यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
गुवाहाटी की शर्मनाक घटना पिछले कुछ दिनों से काफ़ी चर्चा में है | सम्भवतः उसी के चलते बागपत की पंचायत ने फैसला सुनाया की लड़कियों को अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, किसी पुरुष सदस्य के साथ बाहर आना जाना चाहिये | महिला आयोग की चीफ ममता शर्मा ने भी कुछ उसी अंदाज़ में बयान ज़ारी कर दिया की लड़कियों के साथ ऐसी दुर्घटनाएँ पश्चिम के अंधानुकरण के कारण होती हैं | यों देखा जाए तो काफ़ी अरसे से गरमा गरम बहस का विषय रहा है कि नारी को समाज में उसका सम्मान किस प्रकार दिलाया जाए | स्त्री शक्ति को एक किनारे कर देने वाले कन्या भ्रूण की हत्या जैसे अपराध को किस तरह रोका जाए | ऐसा क्या किया जाए कि हर स्त्री समाज में स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर सके | खुल कर साँस ले सके | अपनी इच्छानुसार जीवन जी सके | असम जैसी शर्मनाक घटनाओं को रोकने के लिये क्या उपाय किये जाएँ | और सम्भवतः ऐसी ही घटनाओं से घबराकर और यह सोचकर कि भविष्य में लड़कियों के साथ ऐसी घटनाएँ न घटें – बागपत में पंचायत ने निर्णय लिया कि लड़कियाँ घर से बाहर जाएँ तो किसी पुरुष सदस्य को अवश्य लेकर जाएँ | बहरहाल, बागपत की बात जाने देते हैं, पर क्या इस प्रकार की समस्याओं पर चर्चा करने भर से ही समस्या का समाधान हो सकता है ?
भारत में तो नारी का सदा ही सम्मान होता आया है | भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने सारी दुनिया को सन्देश दिया कि जिस देश में नारी शक्ति को सम्मान दिया जाता है उसी देश में देवता भी निवास करते हैं | पर हम देवताओं की बात छोड़ भी दें तो भी क्या हमारे देश में परिवारजनों से यही संस्कार मिलते हैं कि राह चलती लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ की जाए ? आज जो अधिकाँश माता पिता गर्भ में ही कन्या भ्रूण को समाप्त करवा देते हैं उसके पीछे और बहुत सी बीमार मानसिकताओं के साथ साथ एक यह भी कारण है कि कल को लड़की बड़ी होगी और घर से बाहर पैर रखेगी तो न जाने कैसा सलूक उसके साथ हो | अगर कहीं कुछ उलटा सीधा घट गया तो कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रह जाएँगे | कल को उसके शादी ब्याह में भी समस्या खड़ी हो जाएगी यदि लड़के वालों को उसके साथ हुए किसी दुष्कर्म का पता लग गया |
एक ओर तो आज की नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर वो सारे कार्य कर रही है जिन पर पुरुष कभी अपना एकाधिकार समझता था – आज वह पुलिस की नौकरी में भी है, तो हवाई जहाज भी उड़ा रही है, तो स्पेस में भी जा रही है, तो वैज्ञानिक भी है – और भी अनेकों कार्य जिनके विषय में पुरुष को भ्रम था कि स्त्री नही कर सकती क्योंकि वह स्वभावतः कोमल होती है, आज स्त्री वही सब कार्य पूर्ण कौशल के साथ कर रही है | दूसरी ओर उस पर तरह तरह की पाबन्दियाँ लगाई जा रही हैं | बहुत से पुरुषों को सम्भवतः यह बात हजम नहीं हो रही है कि स्त्री उनसे बढ़कर कैसे हो गई | और इसीलिये आदेश सुनाए जा रहे हैं कि लड़कियाँ घर से बाहर जाएँ तो किसी पुरुष सदस्य को साथ लेकर जाएँ | सम्भवतः वे स्त्री को याद दिला देना चाहते हैं कि वह स्वभाव से कोमल है इसलिये अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकती |
अपने वैदिक और पौराणिक इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि उस समय की नारी न केवल उच्च शिक्षा सम्पन्न हुआ करती थी और सभाओं में शास्त्रार्थ कर प्रकाण्ड पण्डितों की भी बोलती बन्द किया करती थी, अपितु युद्ध कला जैसी विधाओं में भी पारंगत होती थी | पर्दा प्रथा नहीं थी – क्योंकि परदे को उन्नति के मार्ग में अवरोध माना जाता था | इसके साथ साथ पिता की संपत्ति में उसका बराबरी का अधिकार होता था | पूर्ण रूप से स्वावलम्बी अथवा शस्त्र-शास्त्रादि में पारंगत होने के बाद ही उसका विवाह किया जाता था | पूरा अधिकार होता था उसे की यदि उसका पति गलत है तो उसका त्याग कर दे | और इतना ही नहीं, आवश्यकता पड़ने पर स्त्री युद्ध भूमि में भी जाती थी और उसका युद्ध कौशल देखकर शत्रु भी दंग रह जाया करता था | और इसके लिए वैदिक अथवा पौराणिक सन्दर्भों का ही स्मरण करने की क्या आवश्यकता है ? झाँसी की रानी तो इसी युग की देन थीं | फिर क्यों स्त्री की सुरक्षा का नाम लेकर उस पर पाबन्दियाँ लगाई जा रही हैं कि घर से बाहर अकेली न जाए, किसी पुरुष सदस्य को साथ लेकर जाए ? क्यों उस पर हुए अमानुषिक अत्याचारों की भर्त्सना करने के बजाए उसको ही दोषी ठहराया जा रहा है कि उसके पहनावे के कारण उसके साथ ऐसा होता है ? क्यों नहीं प्रयास किया जा रहा राष्ट्रीय स्तर पर, सामजिक स्तर पर और पारिवारिक स्तर पर कि महिलाओं के विषय में लोग अपनी सोच सकारात्मक बनाएँ ? इस तरह की घटनाओं से डरकर उसी को दोषी मानकर अथवा उस पर पाबंदियाँ लगाकर तो आप न केवल उस लड़की के मन में हीन भावना भर रहे हैं बल्कि इन असामाजिक तत्वों की हिम्मत को बढ़ावा भी दे रहे हैं | ऐसे डरने से अच्छा होगा कि उसे “सेल्फ डिफेंस” की ट्रेनिंग दिलवाएँ | भले ही इस ट्रेनिंग के बाद भी वो जमकर इस प्रकार के लोगों से लड़ न सके, पर उसकी पहल से प्रभावित होकर दूसरे लोग उसके बचाव के लिये निश्चित रूप से आगे आएँगे | और यदि नहीं भी आए तो भी कम से कम पुलिस के आने तक तो अपना बचाव कर ही सकती है | साथ ही इस तरह उसके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी | साथ ही लड़की को अच्छे संस्कार दें, ताकि उसकी सोच अच्छी और परिपक्व हो | उसे अच्छी शिक्षा देकर स्वावलम्बी बनाएँ | उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखें | क्योंकि एक स्वस्थ, शिक्षित तथा स्वावलम्बी स्त्री पर आसानी से कोई टेढ़ी नज़र नहीं डाल सकता | ऐसा करने से पहले दस बार सोचेगा | साथ ही अच्छी और परिपक्व सोच वाली, अच्छी तरह से पढ़ी लिखी गुणी, स्वस्थ, स्वावलम्बी तथा अपनी रक्षा करने में सक्षम लड़की ही अपने “आज और कल” के साथ साथ देश का भविष्य भी सँवार सकती है तथा ऐसी संतानों को जन्म दे सकती है जो अच्छे संस्कारों से युक्त हो |
इसी बात पर एक कहानी याद हो आती है | भगवान बुद्ध से एक बार वैशाली के लोगों ने प्रश्न किया था “भगवन, हमारे यहाँ शत्रु का हमला होने वाला है… क्या करें…?” उत्तर में भगवान बुद्ध ने सबसे पहला प्रश्न उन लोगों से किया “आपके राज्य में कृषि की क्या स्थिति है ?”
“बहुत अच्छी भगवान, सिंचाई व्यवस्था बहुत अच्छी है, उत्तम किस्म के बीज किसानों को दिए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप तीनों फसलें अपने निर्धारित समय पर और बहुत अच्छी होती हैं | किसानों से लगान नहीं के बराबर्लिया जाता है |”
“हूँ… और अर्थ व्यवस्था…?” भगवान ने आगे पूछा |
“बिल्कुल सुदृढ़ भगवान… खेती अच्छी तो अर्थ व्यवस्था अपने आप मज़बूत रहेगी | राजकोष भरा हुआ है | देश में कोई भूखा नंगा नहीं है | हर किसी के पास व्यवसाय है – रोज़गार है | हर किसी के लिये शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था है |” लोगों का उत्तर था |
“और सैन्य व्यवस्था…?”
“भगवन, हमारी चतुरंगिणी सेना हर प्रकार के आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित है | शक्तिमान है तथा भली भाँति प्रशिक्षित भी है |”
कुछ देर भगवान सोचते रहे, फिर अचानक ही पूछ बैठे “अच्छा एक बात और बताएँ, राज्य में महिलाओं की क्या स्थिति है ?”
“हमारे यहाँ महिलाओं को न केवल पूर्ण स्वतन्त्रता है बल्कि पूरा पूरा सम्मान भी उन्हें प्राप्त है – फिर चाहे वह गणिका हो अथवा गृहस्थन…” लोगों का उत्तर था |
तब भगवान बुद्ध ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा “फिर आप किसी प्रकार की चिंता मत कीजिए | कोई भी शत्रु आपका कुछ अनर्थ नहीं कर सकता | जिस देश का किसान, युवा और नारी स्वस्थ हों, प्रसन्नचित्त हों, शिक्षित हों, स्वावलम्बी हों, सम्मानित हों, कोई भी शत्रु उस देश का किसी प्रकार का अनर्थ कर ही नहीं सकता |”
आज आवश्यकता है भगवान बुद्ध के इस्सी उपदेश का पालन करने की, न कि लड़कियों और महिलाओं पर अतार्किक रूप से रोक लगाने की – तभी स्वस्थ, सुन्दर और खुशहाल देश का सपना साकार हो सकेगा |