रविवार यानी 10 मार्च को WOW India और DGF के सदस्यों ने मिलकर बड़े उत्साह के साथ महिला दिवस मनाया | तभी कुछ विचार मन में उठे कि हम महिलाएँ जब परिवार की, समाज की, राष्ट्र की, विश्व की एक अनिवार्य इकाई हैं – जैसा कि हमारी लघु नाटिका के माध्यम से कहने का प्रयास भी हम लोगों ने किया – फिर क्या कारण है कि महिला सशक्तीकरण के लिए हमें आन्दोलन चलाने पड़ रहे हैं ? और तब एक बात समझ आई, कि अभी भी बहुत कुछ सीखना समझना शेष है…
लानी है समानता समाज में / और बढ़ाना है सौहार्द दिलों में
तो आवश्यक है सशक्तीकरण महिलाओं का
क्योंकि विश्व की आधी आबादी / नारी
प्रतीक है माँ दुर्गा की शक्ति का
प्रतीक है माँ वाणी के ज्ञान का
प्रतीक है इस तथ्य का / कि शक्ति और ज्ञान के अभाव में
धन की देवी लक्ष्मी का भी नहीं है कोई अस्तित्व…
प्रतीक है स्नेह, सेवा, त्याग और बलिदान का
ईश्वर की अद्भुत कृति नारी
नहीं है सम्भव जिसके बिना कोई भी रचना…
थम जाएगी संसार की प्रगति / यदि थम गई नारी
क्योंकि वही तो करती है सृजन और संवर्धन…
जनयित्री के रूप में करती है पोषण / नौ माह तक गर्भ में
और फिर झूम उठती है अपने कोमल किन्तु सशक्त हाथों में थामे
अपने ही अस्तित्व के अंश को…
उसके बाद समूची जीवन यात्रा में / करती है मार्ग प्रशस्त
कभी माँ, कभी बहन, कभी प्यारी सी बिटिया
और कभी प्रेमिका या पत्नी के रूप में
निर्वाह करती है दायित्व हर रूप में / एक मार्गदर्शक का…
बिटिया के रूप में एक कल्पनाशील मन लिए
जो छू लेना चाहता है आकाश / अपने नन्हे से हाथों से…
सुन्दरी युवती के रूप में कुछ अनोखे भाव लिए
जो मिलाकर एक कर सकती है / धरा गगन की सीमाओं को भी
इसीलिए अपनाती है एक सशक्त जीवन दर्शन…
और अन्त में जीवन के अनेकों अनुभवों से पूर्ण
एक प्रौढ़ा और फिर वृद्धा के रूप में
मिला देती है हरेक दर्शन को
साथ में अपने जीवन दर्शन के…
ठीक वैसे ही / जैसे प्रकृति दिखलाती है नित रूप नए
जिनमें होते हैं निहित मनोभाव / समस्त जड़ चेतन के…
पर हे नारी ! सीखना होगा तुम्हें सबसे पहले
प्यार और सम्मान करना स्वयं की ही आन्तरिक शक्ति का…
गर्व करना स्वयं के ही ज्ञान और जीवन दर्शन पर…
मुग्ध हो जाना अपने स्वयं के ही आन्तरिक सौन्दर्य पर…
और अभिभूत हो जाना अपनी स्वयं की हर छोटी बड़ी उपलब्धि पर…
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