बिटिया तू हो चिर सुहागिनी

लाडली बिटिया के विवाह पर मन के उद्गार…

बिटिया हो तू चिर सुहागिनी ||
कम्पित कर से कम्पित स्वर से, झंकृत स्पन्दित तार तार से
मधुमय रसमय मनवीणा से
कोमल लय कोमल पुकार से गूँज रही ये मधुर रागिनी |
बिटिया हो तू चिर सुहागिनी ||
स्वर्ण वर्ण से निर्झरिणी में, तुहिन बिन्दु से वनस्थली में
सौरभ से अधखिली कली में
मैंने अंकित करी चाँदनी से तेरी चिरमिलन यामिनी |
बिटिया हो तू चिर सुहागिनी ||
उठो लाडली, प्रिय की प्रेयसी, स्वर साधन कर आओ रूपसि
नाचो, नाच उठें तारा शशि
ताल ताल पर बोल उठें ये रुनझुन नूपुर मधुर किंकिणी |
बिटिया हो तू चिर सुहागिनी ||
भाग्यवती मैं तुझको दूँ क्या, सोच रही हूँ कहूँ, कहूँ क्या
पर यूँ ही कंगाल रहूँ क्या ?
इसीलिये तारों से झोली भर लाई है चपल यामिनी ||
बिटिया हो तू चिर सुहागिनी ||

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