परछाईं
मेरा जीवन कितना ऊँचा कितना लम्बा,
कितनी दूर तलक है इसका ताना बाना
किन्तु कहीं कुछ और, कहीं कुछ और बनी मैं,
कहीं बनी परछाईं. कहीं आकार बनी मैं ||१||
इसमें कितने ही हैं मैंने रूप समेटे,
कितने ही छाया चित्रों के व्यूह समेटे |
इसमें जुड़कर कितनों को है अर्थ मिल गया,
निज सार्थकता से किंचित् अनजान नहीं मैं ||२||
जग के कण कण में है फैला जीवन मेरा,
नाप सको तो नापो इसकी लम्बाई को |
ताजमहल से भी मोहक व्यक्तित्व लिये मैं,
पर्वत सी स्थिर, सागर सी गहरी हूँ मैं ||३||
किन्तु नहीं, ये सारी बातें कल की बातें,
जग की सुनकर, गर्वित हो मैंने दोहराईं |
मेरा जीवन आज मात्र है जीवन तेरा,
केवल तेरी परछाईं हूँ आज बनी मैं ||४||
चाहे नापो लम्बाई या गहराई को,
या फिर स्थिरता की अग्निपरीक्षा ले लो |
परछाईं से दूर कभी न कोई जा सका,
इसीलिये परछाईं ही रहना चाहूँ मैं ||५||
दोहराते रहना
वासन्ती मुस्कान लिये तुम यों ही मुस्काते रहना
कही कहानी कल जो तुमने उसको दोहराते रहना ||१||
पुष्प प्रणय का खिला हुआ है, किन्तु चतुर्दिक काँटे हैं
कल हममें क्या बात हुई, कर रहे सभी ये बातें हैं |
पर उन बातों को सुनकर तुम यों ही बहलाते रहना
कही कहानी कल जो तुमने उसको दोहराते रहना ||२||
शून्य हो गई सब चेतनता, अंगों में आलस्य भरा
नयनों में अद्भुत चंचलता, मन में है उन्माद भरा |
कल जो गाँठ बंधी हममें, तुम उसको सहलाते रहना
कही कहानी कल जो तुमने उसको दोहराते रहना ||३||
चली आ रही कब से दुनिया, पता नहीं कित जाना है
नहीं कोई है संगी साथ, और न कोई ठिकाना है |
डरना क्या, तुम साथ हमारे यों ही इठलाते रहना
कही कहानी कल जो तुमने उसको दोहराते रहना ||४||
हम दो चेतनता के साथी, मिले हुए कुछ ऐसे हैं
जगी स्नेह की लौ में बाती और स्नेह संग जैसे हैं |
स्नेह दीप ना बुझे कभी, तुम बाती उकसाते रहना
कही कहानी कल जो तुमने उसको दोहराते रहना ||५||