Monthly Archives: September 2017

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

अपराजिता देवी प्रत्येक व्यक्ति के मन में प्राणी मात्र के प्रति समता की – दया और करुणा की – एकता की – भावना का विकास करते हुए हम सबके जीवन में ऊर्जा का संचार करती हुई सभी को जीवन के हर क्षेत्र में विजय दिलाती हुई समस्त प्रकार की नकारात्मकता और अज्ञान रूपी शत्रुओं का नाश करें, इसी कामना के साथ सभी को विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…

http://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2017/09/30/%e0%a4%86%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%81-%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be/

 

 

शुभ प्रभात

हम लोग अक्सर अपने कष्टों का स्मरण करके व्यथित होते रहते हैं | लेकिन यदि हम अपने चारों ओर बिखरे प्रेम के सौन्दर्य को मन की आँखों से निहारकर उसकी प्रशंसा करना सीख जाएँ, और अपने चारों ओर के वायुमण्डल में व्याप्त स्नेहरज की सुगन्धि को हृदय से अनुभव करके उसे अपने मन में बसाना सीख जाएँ – तो हम अपने सारे कष्टों को भूल जाएँगे और हमें केवल अच्छाई और अनुकूलता का ही अनुभव होगा और हमारा जीवन सुखी व सरल हो जाएगा | आपका दिन प्रेम के सौन्दर्य से युक्त और स्नेहरज की सुगन्धि से सुगन्धित रहे…

सौन्दर्य

विश्वकर्मा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

आज विश्वकर्मा दिवस है – सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाओं – शिल्प विद्याओं के ज्ञाता,  सबसे प्रथम भवन निर्माता – आर्किटेक्ट और वास्तु शास्त्र के ज्ञाता तथा तकनीक यानी टेक्नोलॉजी और विज्ञान के जनक माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की उपासना का दिन – सभी को इस विश्वकर्मा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

हिन्दू मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा निर्माण का – सृजन का देवता है – आधुनिक समय के अनुसार उन्हें हम एक आर्किटेक्ट – भवन निर्माता और वास्तु विशेषज्ञ – कह सकते हैं | देखा जाए तो सबसे प्रथम आर्किटेक्ट और वास्तु शास्त्र के विशेषज्ञ विश्वकर्मा ही थे | यही कारण है कि भवन निर्माण में जितनी भी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है उन सबका देवता भी विश्वकर्मा को ही माना जाता है | ऐसी मान्यता है कि रावण की सोने की लंका का निर्माण भी उन्होंने ही किया था | वे हस्तलिपि के भी कलाकार थे तथा और भी अनेक प्रकार की कलाओं में सिद्धहस्त थे | वैदिक काल और पौराणिक काल तक विश्वकर्मा कोई उपाधि नहीं थी, कालान्तर में इसे एक उपाधि बना दिया गया |

ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएँ उपलब्ध होती हैं | जिनमें प्रत्येक मन्त्र पर विश्वकर्मा ऋषि, भुवन देवता लिखा हुआ मिलता है | साथ ही इसके भी प्रमाण उपलब्ध हैं कि ऋग्वेद में विश्वकर्मा शब्द का प्रयोग इन्द्र, सूर्य और प्रजापति के विशेषणों के रूप में भी हुआ है |

ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उसी के गर्भ से समस्त प्रकार की शिल्प विद्याओं के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ | सम्भव है ऋग्वेद की ऋचाओं में जो “भुवन देवता” शब्द मिलता है वह विश्वकर्मा की माता के नाम का ही द्योतक हो |

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी | प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च | विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः || – स्कंद पुराण / प्रभात खण्ड – 16

इस प्रकार शिल्प शास्त्र विशेषज्ञ – शिल्प शास्त्र के देवता विश्वकर्मा महर्षि अंगिरस के दौहित्तृ तथा देवगुरु आचार्य बृहस्पति के भान्जे और प्रभास ऋषि के पुत्र होते हैं तथा समस्त सिद्धियों के जनक माने हैं |

विश्वकर्मा शब्द की व्युत्पत्ति है “विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः” अर्थात समस्त सृष्टि तथा उससे सम्बद्ध कर्म व्यापार जिसका है वह विश्वकर्मा | यही कारण है कि भारत वर्ष में प्रतिवर्ष 17 सितम्बर को प्रत्येक सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों में – प्रत्येक शिल्प संकायों में, कारखानों में, तकनीकी क्षेत्रों में तथा विविध औद्योगिक क्षेत्रों में विश्वकर्मा दिवस मनाया जाता है | आज के दिन किसी भी प्रकार के औज़ारों से काम करने वाले व्यक्ति अपने अपने औज़ारों की पूजा भी करते हैं |

इसके अतिरिक्त विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश आदि कर्यो मे भी विश्वकर्मा की पूजा आवश्यक मानी जाती है:

विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके | सर्वकर्मसु संपूज्यो विशवकर्मा इति श्रुतम ||ऐसा श्रुतियों का कथन है |

इस सबसे यह तो स्पष्ट होता ही है कि विशवकर्मा की पूजा जन साधातन के कल्याण के लिए है | इसलिए हर व्यक्ति को सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाओं – शिल्प विद्याओं के ज्ञाता,  अतएव प्रत्येक प्राणी को सृष्टिकर्ता, समस्त पराकात की शिल्प कलाओं – शिल्प विद्याओं के ज्ञाता, तकनीक यानी टेक्नोलॉजी और विज्ञान के जनक माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की उपासना अवश्य करनी चाहिए |

एक बार पुनः विश्वकर्मा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ…

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शुभ प्रभात

हमारा हृदय जीवमात्र के प्रति करुणाशील होगा तो हमारी उस भावना को समस्त प्रकृति अनुभव करेगी… न केवल जीवमात्र के प्रति – समस्त चराचर के प्रति… क्योंकि समस्त प्रकृति जीवनी शक्ति से युक्त है… इसका एक छोटा सा उदाहरण घरों में कोने की मेज़ पर सजे छोटे छोटे पौधे हैं… आप उनके साथ प्रेम से दो पल बात करेंगे, उनका हाल चाल पूछेंगे, तो आपको स्वयं अहसास होगा कि वे आपकी बात का उत्तर उसी प्रेम और करुणा से दे रहे हैं… और ये केवल भ्रान्ति नहीं है… अनुभव करके देखिये…

करुणा

हिन्दी दिवस – एक औपचारिकता ?

पिछले चार पाँच दिनों से निमन्त्रण पत्र प्राप्त हो रहे थे | “हिन्दी दिवस” के उपलक्ष्य में कुछ सँस्थाओं द्वारा काव्य सन्ध्याओं का आयोजन किया गया तो कुछ ने परिचर्चाओं का आयोजन किया कि किस तरह अपनी “मातृभाषा” को युवा तथा जीवित रखा जाए… आदि विषयों पर… बड़ा अच्छा लगा ये सब देखकर कि अपनी “मातृभाषा” के लिए लोग इतने चिन्तित हैं… सोच रहे थे कि इतने लोग इतना कुछ लिख चुके हैं हिन्दी दिवस के सन्दर्भ में तो हम पुनरावृत्ति ना ही करें तो अच्छा होगा… पर लिखे बिना रहा नहीं गया…

आज तो हद ही हो गई जब सवेरे से “हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं” के इतने सारे सन्देश प्राप्त हुए जितने शायद हमारे जन्मदिन की शुभकामनाओं के भी नहीं मिलते होंगे | अच्छा भी लगा ये सब देखकर, पर फिर भी सोचने पर विवश हो गई कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है तो एक दिन ही हिन्दी के लिए समर्पित किसलिए ? एक दिन “हिन्दी दिवस” के उपलक्ष्य में गोष्ठियाँ होती हैं, हिन्दी को जीवित कैसे रखा जाए – आदि विषयों पर परिचर्चाओं का आयोजन किया जाता है – समाचार पत्रों और समाचार चैनल्स पर बड़ी बड़ी परिचर्चाओं में नामी गिरामी हस्तियाँ भाग लेती हैं – कुछ सुझावों का आदान प्रदान किया जाता है – कुछ योजनाएँ बनाई जाती हैं – और इस एक दिन की गहमा गहमी के बाद सब वापस ठण्डे बस्ते में चला जाता है और हमारे परिवारों के बच्चे बड़ी शान से अपनी माँओं से पूछते हैं “मम्मी उन्नीस मतलब कितना हुआ?”

और इसमें ग़लती उन बच्चों की नहीं है, आज की माताएँ भी बच्चे के जन्म लेते ही उसके साथ हिन्दी में वार्तालाप करने के स्थान पर उसे बोलना शुरू कर देती हैं “ओह, डोंट क्राई माई बेबी… ममा इज़ कमिंग… ओके, यू आर हंग्री, ममा विल फीड यू…” या बच्चे किसी के घर जाकर शोर मचाते हैं तो माताएँ उन पर चिल्लाती हुई बोलती हैं “शाउट मत करो… आंटी के उस रूम में एक घोस्ट है… आंटी वहाँ लॉक कर देंगी आपको…” जैसे उनका जन्म किसी अँग्रेज़ी बोलने वाले देश में हुआ हो ।

आज हममें से बहुतेरों की स्थिति ऐसी है कि हम सोचते हिन्दी या हिन्दुस्तानी में हैं लेकिन बोलते अंग्रेजी में हैं | क्या ये सब हास्यास्पद नहीं लगता ? क्या इस अंग्रेज़ियत की गुलामी वाली सोच को हमेशा को बदलने के लिए हर दिन “हिन्दी दिवस” नहीं होना चाहिए ?

माना आज अंग्रेज़ी विश्व स्तर पर जनसम्पर्क की भाषा है और आगे बढ़ना है – देश को विश्व स्तर पर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रखना है – तो अंग्रेज़ी के महत्त्व से इन्कार नहीं किया जा सकता | लेकिन जब हम अपनों के मध्य हैं – अपने परिवार में हैं – अपने सामान भाषा-भाषी मित्रों के बीच हैं – तब तो हमें हिन्दी बोलने-लिखने-पढ़ने में कोई शर्म नहीं आनी चाहिए – कोई हीनभावना हममें नहीं आनी चाहिए…

आप संसार के किसी भी देश में चले जाइए – हर देश में उनकी अपनी भाषा लिखी-पढ़ी-बोली जाती है | कारण, वे लोग अपनी ही भाषा में सोचते हैं तो निश्चित रूप से उसी भाषा में लिखने-पढ़ने-बोलने में सक्षम होंगे | और उन सबको अपनी अपनी भाषाओं को बोलने में गर्व का अनुभव होता है | उनके मन में कभी इस बात के लिए हीन भावना नहीं आती कि अंग्रेज़ी में बात नहीं करेंगे तो लोग क्या कहेंगे ?

और दूर क्यों जाएँ ? हमारे अपने देश में ही बंगाली अपनी भाषा में बात करते हैं तो दक्षिण भारतीय अपनी अपनी भाषाओं में धाराप्रवाह वार्तालाप करते हैं | फिर हिन्दीभाषी क्षेत्रों के लोगों के मन में हिन्दी को लेकर हीन भावना क्यों है ?

“वसुधैव कुटुम्बकम्” का नारा देकर संसार की समस्त संस्कृतियों को अपनी संस्कृति के साथ मिला लेने की सामर्थ्य रखने वाले हमारे देश की मातृभाषा तो वास्तव में “वसुधैव कुटुम्बकम्” की मिसाल है | न जाने कितनी भाषाओं को, न जाने कितनी क्षेत्रीय बोलियों को हिन्दी ने आत्मसात् किया हुआ है | जिस भाषा का “हृदय” इतना विशाल है उसी भाषा के प्रति इतनी उदासीनता तथा उसमें वार्तालाप करने में इतनी हीनभावना किसलिए ? कहीं “हिन्दी दवस” के आयोजन मात्र औपचारिकता भर ही तो नहीं हैं ? विचारणीय प्रश्न है…

हिन्दी दिवस

शुभ प्रभात – अपने विचार सकारात्मक रखें

किसी भी व्यक्ति के लिए अपने विचारों और भावनाओं पर नियन्त्रण रखना अत्यन्त आवश्यक है | सकारात्मक विचार वाले व्यक्ति के हृदय में प्रेम, उल्लास और उत्साह की ऐसी सरिता प्रवाहित होती है कि उसे समस्त संसार ही प्रेममय-उल्लासमय तथा उत्साहयुक्त प्रतीत होने लगता है | हर जड़ चेतन में वह केवल प्रेम का, उत्साह का और सकारात्मकता का ही अनुभव करता है और इसीलिए उसे हर ओर – समस्त प्रकृति में – मानव मात्र में – जीवमात्र में – केवल उल्लास ही उल्लास दीख पड़ता है |

जिस व्यक्ति के मन में भय, क्रोध, ईर्ष्या, लालच, घृणा जैसे नकारात्मक विचार होंगे वह क्या किसी से प्रेम करेगा ? और जो प्रेम नहीं कर सकता वह कैसे उल्लासमय तथा उत्साह से पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है ?

इसलिए हमें अपने विचार सदा सकारात्मक रखने चाहियें और अपनी भावनाओं को दूषित होने से बचाना चाहिए |

विचार

 

शुभ प्रभात

आज हम सभी किसी न किसी बात से चिन्तित रहते हैं | किसी ने हमारी बात नहीं सुनी या हमें “तू” करके बोल दिया – हमें अपना अपमान लगने लगता है | रात दिन इस बात की चिन्ता सताती रहती है कि जो कुछ हमारे पास है – धन, सम्पत्ति, परिवार, मान-प्रतिष्ठा – कुछ भी – वो कोई छीन न ले या उसकी हानि न हो जाए | बीमारी का भय, मृत्यु का भय, किसी प्रकार के अभाव का भय, असफलता का भय – न जाने कितने प्रकार के भयों के साए में हम सब अपना जीवन व्यर्थ गँवा देते हैं | यदि हम उस परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर निष्काम भाव से अपने समत कर्म करते रहेंगे तो किसी प्रकार का भय हमें सताएगा ही नहीं और जीवन सरल तथा सुखी हो जाएगा |

भय