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कार्तिक मास का महत्त्व

कार्तिक मास का महत्त्व

कार्तिक मास चल रहा है और कल से पञ्चपर्वों की श्रृंखला दीपावली का महान पर्व आरम्भ हो जाएगा | वास्तव में हिन्दू मान्यता में कार्तिक मास का विशेष महत्त्व माना गया है | इसे भगवान विष्णु का महीना कहा जाता है तथा विष्णु पूजा का इस माह में विशेष महत्त्व माना जाता है | साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि इसी माह में भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था और इसीलिए विजय दिलाने वाला माह भी इसे कहा जाता है | यह माह भगवान कृष्ण के लिए भी समर्पित होता है | मान्यता है कि इसी माह में भगवान कृष्ण ने नरकासुर जैसे राक्षस का वध किया था | बहुत सारे पर्व भी एक साथ इस माह में आते हैं |

इस माह में प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर तुलसी और आँवले के वृक्ष के पूजन का विधान है | इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है | यदि नदियों में स्नान नहीं भी किया जा सके तो भी अपने घरों में ही ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पूजा अर्चना आदि का विधान है | इस स्नान का जहाँ एक ओर धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व है वहीं यह स्नान स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है | हल्की हल्की ठण्ड आरम्भ हो जाती है, ऐसे में शीतल जल से ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी रहता है ऐसा माना जाता है |

तुलसी, सूर्य और आँवले के वृक्ष को अर्घ्य समर्पित किया जाता है और दोनों सन्ध्याकाल में इन वृक्षों के निकट दीप प्रज्वलित किया जाता है | इन दोनों ही वृक्षों को स्वास्थ्य के लिए भी अत्यन्त उपयोगी माना जाता है | ऐसे में इन वृक्षों की पूजा अर्चना का महत्त्व और भी बढ़ जाता है | कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी भी कहा जाता है और इस दिन विशेष रूप से आँवले का पूजन किया जाता है | तुलसी पत्र तोड़ने के लिए भी शास्त्रों में पूरा विधान बताया हुआ है, जिसके अनुसार “तुलसीं ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवा:” अथवा

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया |

चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने ||

त्वदंगसम्भवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिम् |

तथा कुरु पवित्रांगि ! कलौ मलविनाशिनी ||

मन्त्र का जाप करते हुए तुलसीपत्र तोड़ने चाहियें | श्रद्धा भक्तिपूर्वक पौधे को हिलाए बिना पत्र तोड़ने चाहियें |

साथ ही स्नान किये बिना, वैधृति तथा व्यातिपत योग में, मंगल शुक्र और रविवार में, द्वादशी अमावस्या और पूर्णिमा तथा संक्रान्तिकाल में, बच्चे के जन्म के समय, किसी की मृत्यु के समय, रात्रि और दोनों सन्ध्याओं में तुलसीपत्र तोड़ना निषिद्ध माना गया है | किन्तु यदि आवश्यकता हो तो नीचे गिरे तुलसीदल का प्रयोग किया जा सकता है |

इन समस्त कार्यों के बाद अन्त में सायंकाल दीपदान की प्रथा है | यह दीपक नदी, पोखर, तालाब आदि जल के स्थानों पर तथा मन्दिर आदि में किया जाता है | साथ ही आकाश में भी दीपदान किया जाता है – जिसे आकाशदीप (कंदील) के नाम से जाना जाता है | माना जाता है कि कार्तिक मास में जो व्यक्ति आकाशदीप का दान करता है उसे समस्त सुख तथा अन्त में मुक्ति प्राप्त होती है | आकाशदीप दान करते समय “दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च | नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् ||” मन्त्र का जाप करने का विधान है |

वास्तविकता तो ये है कि केवल तुलसी और आँवले की ही नहीं अपितु वैदिक काल में तो सभी प्रकार के वृक्षों की पूजा अर्चना का विधान था तथा उनके पत्र, पुष्प, लकड़ी आदि काटने से पूर्व उनकी प्रार्थना की जाती और उनसे ऐसा करने की अनुमति ली जाती थी | ये समस्त प्रथाएँ तथा जलाशयों और आकाश आदि की पूजा अर्चना और दीपदान आदि धार्मिक प्रक्रियाएँ इसी तथ्य के द्योतक हैं कि उस समय जन साधारण प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति कितना अधिक संवेदनशील था | अपने जलाशयों, वृक्षों आदि की मनुष्य पूर्ण विधि विधान से पूजा अर्चना करता था उनके प्रति अनाचार कैसे कर सकता था ?

आज के युग में हम सभी का यह कर्तव्य है की इन समस्त धार्मिक प्रक्रियाओं को पूर्ण करने मात्र से ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री मानकर न बैठ जाएँ, अपितु इनके माध्यम से प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करना सीखें, वास्तविक धर्मपरायणता तो यही होगी और तभी हम पर्यावरण प्रदूषण तथा शुष्क होते जा रहे जलाशयों जैसी समस्याओं से निश्चित रूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं…

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/10/24/importance-of-kartik-month/

 

नक्षत्र – एक विश्लेषण

नक्षत्रों के आधार पर हिन्दी महीनों का विभाजन और उनके वैदिक नाम:-

ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों के विषय में हम पहले बहुत कुछ लिख चुके हैं | अब हम चर्चा कर रहे हैं कि किस प्रकार हिन्दी महीनों का विभाजन नक्षत्रों के आधार पर हुआ तथा उन हिन्दी महीनों के वैदिक नाम क्या हैं | इस क्रम में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण और भाद्रपद माह के विषय में पूर्व में लिख चुके हैं, आज आश्विन और कार्तिक माह…

आश्विन : इस माह में तीन नक्षत्र आते हैं – रेवती, अश्विनी और भरणी, किन्तु अश्विनी नक्षत्र प्रमुखता से होने के कारण इसका नाम आश्विन हुआ | अर्थात, इस माह में चन्द्रमा सबसे अधिक अश्विनी नक्षत्र के निकट भ्रमण करता है | शरद पूर्णिमाइसका वैदिक नाम है “इष”, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है इच्छा करना – इश धातु से ही इच्छा शब्द की निष्पत्ति हुई है | किसी वस्तु को खोजने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है | किसी का पक्ष लेना, किसी बात का निर्णय करना, कोई निश्चय करना, चयन करना आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग वैदिक और वेदिकोत्तर साहित्य में होता रहा है | बलिष्ठ, द्रुत गति से चलना, भोजन करना आदि के लिए यह शब्द प्रयुक्त होता है | किसी को Comfort पहुँचाने के लिए, किसी वस्तु में वृद्धि के लिए, आकाश से बरसते मन को प्रसन्न करते वर्षा के पानी के लिए तथा कोमल वस्तुओं के लिए इस शब्द का अनेकों रूपों में प्रयोग होता आया है | मन को जो आनन्दित करे ऐसा माह माना जाता है, सम्भवतः इसी कारण इसी माह में नवरात्र भी आरम्भ हो जाते हैं तथा विजया दशमी के साथ ही बहुत से अन्य पर्व इस माह में मनाए जाते हैं | किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए यह माह उत्तम माना जाता है |

कार्तिक : इस महा में दो नक्षत्र होते हैं – कृत्तिका और रोहिणी | किन्तु कृत्तिका नक्षत्र की प्रमुखता इस माह में रहती दीपदानहै – अर्थात चन्द्रमा इस माह में सबसे अधिक कृत्तिका नक्षत्र पर भ्रमण करता है – इसलिये इसका नाम कार्तिक पड़ा | इसका वैदिक नाम है “अर्ज” जो एक धातु है और जिसका अर्थ होता प्राप्त करना – to get, to earn | इसके अतिरिक्त किसी वस्तु को कहीं भेजने – Dispatch करने के लिए, हटाने – Remove करने के लिए, किसी की रक्षा करने के लिए, सुरक्षित रखने के लिए, किसी पर अधिकार प्राप्त करने के लिए, किसी को आकर्षित करने के लिए, कार्य करने अथवा किसी वस्तु का निर्माण करने के लिए, किसी को आज्ञा देने के लिए भी अर्ज शब्द का प्रयोग होता है | ऐसी मान्यता है कि इस माह में गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना भाग्यवर्द्धक होता है | वास्तव में अश्विन माह से ग्रीष्म कुछ शान्त होने लगती है जो कार्तिक मास आने तक बहुत आनन्ददायक शरद ऋतु में परिवर्तित हो जाती है | ग्रीष्म और वर्षा ऋतुओं से शान्ति प्रदान करने वाली शरद पूर्णिमा के अगले दिन से आरम्भ होने वाले कार्तिक माह की पूर्णिमा – जिसे कार्तिकी पूर्णिमा और देव दिवाली भी कहा जाता है – को तो गंगा स्नान का बहुत ही महत्त्व माना जाता है | कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली तो समस्त चराचर प्रकृति को उल्लसित करने वाला पर्व होता ही है |

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/01/28/constellation-nakshatras-34/