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नक्षत्र – एक विश्लेषण

पुष्य

मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों पर चर्चा के क्रम में अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा तथा पुनर्वसु नक्षत्रों के नामों पर बात करने के पश्चात अब चर्चा करते हैं पुष्य नक्षत्र के नाम का अर्थ क्या है और इसकी निष्पत्ति किस प्रकार हुई है |

पुष् धातु से पुष्य शब्द की निष्पत्ति हुई है | इसका अर्थ होता है देखभाल करना, बढ़ाना, पोषित करना, प्रशंसा करना, संतुष्ट करना, पालन पोषण करना, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करना आदि | ऋग्वेद में पुष्य का नाम तिष्य प्राप्त होता है – जिसका अर्थ भी शुभ, सुन्दर, आकर्षक तथा सुख सम्पदा देने वाला माना जाता है | कहने का अभिप्राय है कि इस नक्षत्र को अत्यन्त शुभ और कल्याणकारी माना जाता है | साथ ही तिष्य शब्द को कलियुग का एक पर्यायवाची भी माना जाता है |

इस नक्षत्र का प्रतीक चिह्न गाय का थन माना जाता है | जिस प्रकार गौ का दूध अमृत के समान पोषण करता है तथा शरीर और मन को प्रसन्नता पहुँचाता है उसी प्रकार पुष्य नक्षत्र भी पोषण करने के साथ साथ प्रसन्नता भी प्रदान करने वाला माना जाता है | इसके अतिरिक्त गाय में सभी देवताओं का निवास माना जाता है | साथ ही गाय के ही सामान इसमें मातृत्व के भी सभी गुण जैसे उत्पादन क्षमता, संरक्षण और सम्वर्धन आदि माने जाते हैं | सौभाग्य के लिए भी पुष्य शब्द का प्रयोग किया जाता है |

इस नक्षत्र में तीन तारे एक त्रिकोण के आकार में होते हैं तथा यहाँ पुनर्वसु नक्षत्र की ही भाँति पौष माह में दिसम्बर और जनवरी के मध्य आता है | पुष्य को प्रगति का प्रतीक भी माना जाता है और इसके तीन तारों को प्रगतिशील रथ के चक्र के रूप में भी देखा जाता है | देवगुरु बृहस्पति के जितने भी नाम हैं वे सब इस नक्षत्र के प्रयुक्त होते हैं, जैसे: गुरु, जीव, देवपुरोहित इत्यादि | गुरूवार को यदि चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में होता है तो उस दिन गुरु-पुष्यामृत योग बनता है जो अत्यन्त शुभ माना जाता है |

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