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मंगल का धनु में गोचर

आज यानी शुक्रवार सात फरवरी माघ शुक्ल चतुर्दशी को 27:52 (कल सूर्योदय से पूर्व 3:52) के लगभग गर करण और आयुष्मान योग में मंगल अपनी स्वयं की वृश्चिक राशि से निकल कर अपने मित्र ग्रह गुरु की धनु राशि और मूल नक्षत्र पर प्रस्थान कर जाएगा | गुरुदेव जहाँ पहले से ही अपने मित्र के स्वागत के लिए विराजमान हैं | यहाँ मंगल को केतु का साथ भी मिलने के कारण मंगल और अधिक बली भी हो जाएगा | धनु राशि में भ्रमण करते हुए मंगल 27 फरवरी को पूर्वाषाढ़ तथा 17 मार्च को उत्तराषाढ़ नक्षत्र पर भ्रमण करते हुए अन्त में 22 मार्च को दिन में दो बजकर चालीस मिनट के लगभग अपनी उच्च राशि मकर में राश्यधिपति शनि के पास प्रस्थान कर जाएगा | धनु राशि के लिए मंगल पंचमेश तथा द्वादशेश है | मंगल की राशि मेष के लिए धनु राशि भाग्य स्थान तथा वृश्चिक के लिए द्वितीय भाव है | धनु राशि में भ्रमण करते हुए मंगल की दृष्टियाँ मीन राशि, मिथुन राशि तथा कर्क राशियों पर रहेंगी | इन्हीं सब तथ्यों के आधार पर जानने का प्रयास करते हैं मंगल के धनु राशि में गोचर के विभिन्न राशियों के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं…

किन्तु ध्यान रहे, किसी एक ही ग्रह के गोचर के आधार पर स्पष्ट फलादेश करना अनुचित होगा | उसके लिए योग्य Astrologer द्वारा व्यक्ति की कुण्डली का विविध सूत्रों के आधार पर व्यापक अध्ययन आवश्यक है |

मेष : आपके राश्यधिपति और अष्टमेश का गोचर आपकी राशि से भाग्य स्थान में हो रहा है, जहाँ से आपके बारहवें, तीसरे और चौथे भावों पर उसकी दृष्टियाँ हैं | आपके लिए यह गोचर अनुकूल कहा जा सकता है | कार्य में प्रगति के साथ ही यात्राओं में वृद्धि की भी सम्भावना है | किन्तु यात्राओं पर पैसा अधिक खर्च हो सकता है, अतः बजट बनाकर चलना आपके लिए हित में रहेगा | आप अपने लिए नया घर खरीद सकते हैं अथवा वर्तमान निवास को ही Renovate करा सकते हैं | परिवार में किसी नए सदस्य का आगमन भी सम्भव है | साथ ही परिवार में कोई मंगल कार्य भी सम्पन्न हो सकता है | आध्यात्मिक तथा धार्मिक गतिविधियों में वृद्धि की भी सम्भावना है | अपनी माता जी के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है |

वृषभ : आपका सप्तमेश और द्वादशेश होकर मंगल का गोचर आपके अष्टम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके लाभ स्थान, द्वितीय भाव तथा तीसरे भाव पर मंगल की दृष्टियाँ हैं | आपको अचानक ही किसी ऐसे स्रोत से आर्थिक लाभ की सम्भावना है जहाँ की आपने कल्पना भी नहीं की होगी | किसी वसीयत के माध्यम से आपको प्रॉपर्टी का लाभ भी हो सकता है | आपके छोटे भाई बहनों के लिए भी लाभ की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | सम्भव है आपको किसी कार्य में आरम्भ में व्यवधान का भी अनुभव हो | किन्तु वह व्यवधान अधिक समय नहीं रहेगा और आपका कार्य पुनः आगे बढ़ सकता है | आपकी वाणी इस अवधि में अत्यन्त प्रभावपूर्ण रहेगी और आपके कार्य में आपको उसका लाभ भी प्राप्त होगा | हाँ, सम्बन्धों में मधुरता बनाए रखने के लिए वाणी पर तथा स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए खान पान पर संयम रखने की आवश्यकता है | साथ ही यात्राओं के दौरान स्वास्थ्य की ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है |

मिथुन : आपकी राशि के लिए षष्ठेश और एकादशेश होकर मंगल का गोचर आपके सप्तम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके कार्य स्थान, लग्न तथा धन भाव पर मंगल की दृष्टियाँ हैं | आपके लिए तथा आपके जीवन साथी के लिए कार्य की दृष्टि से तथा आर्थिक दृष्टि से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | पार्टनरशिप में यदि कोई कार्य है तो उसमें किसी प्रकार का व्यवधान उपस्थित हो सकता है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | किन्तु आप अपने व्यवहार तथा प्रयासों से सभी अवरोधों को दूर करने में समर्थ भी हो सकते हैं | आपको अपने तथा अपने जीवन साथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता होगी | यदि अविवाहित हैं तो जीवन साथी की खोज भी इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | किन्तु साथ ही यदि अपनी वाणी पर नियन्त्रण नहीं रखा तो दाम्पत्य जीवन तथा प्रेम सम्बन्धों में तनाव भी उत्पन्न हो सकता है |

कर्क : आपके लिए पंचमेश और दशमेश होकर योगकारक बन जाता है तथा इसका गोचर आपके छठे भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके नवम भाव पर, बारहवें भाव पर तथा आपकी लग्न पर उसकी दृष्टियाँ हैं | किसी आवश्यक कार्य के लिए आपको विदेश यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं | साथ ही इन यात्राओं में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है | किन्तु आपके उत्साह में तथा निर्णायक क्षमता में वृद्धि के कारण आपके कार्य की दृष्टि से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | कोई नवीन कार्य आपको प्राप्त हो सकता है जिसके कारण आप लम्बे समय तक व्यस्त रहते हुए अर्थलाभ कर सकते हैं, किन्तु सोच समझ कर ही आगे बढें | यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसका परिणाम आपके पक्ष में आ सकता है | प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे लोगों के लिए तथा स्पोर्ट्स से जुड़े लोगों के लिए यह गोचर अनुकूल परिणाम देने वाला प्रतीत होता है |

सिंह : आपका चतुर्थेश और नवमेश होकर आपका योगकारक बनता हुआ मंगल का गोचर आपके पंचम भाव में हो रहा है जहाँ से आपके अष्टम, एकादश और द्वादश भावों पर उसकी दृष्टियाँ हैं | आपके लिए उत्साह में वृद्धि के संकेत प्रतीत होते हैं | नौकरी में पदोन्नति की सम्भावना की जा सकती है | किसी अप्रत्याशित स्थान से प्रॉपर्टी अथवा अर्थलाभ की सम्भावना भी की जा सकती है | मित्रों का सहयोग प्राप्त रहेगा | आप इस अवधि में अपने कार्य से सम्बन्धित Advance course के लिए भी प्रयास कर सकते हैं | आपकी सन्तान के लिए भी ये गोचर लाभदायक प्रतीत होता है | यदि आपकी सन्तान विवाह योग्य है तो उसके विवाह की भी सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | अविवाहित हैं तो इस अवधि में जीवन साथी की खोज भी पूर्ण हो सकती है | स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है |

कन्या : आपका तृतीयेश और अष्टमेश होकर मंगल का गोचर आपके चतुर्थ भाव में हो रहा है | सप्तम, दशम तथा एकादश भावों पर इसकी दृष्टियाँ हैं | आपके लिए यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | कार्य में प्रगति तथा आर्थिक स्थिति में दृढ़ता के संकेत हैं | आपको कुछ ऐसे नवीन प्रोजेक्ट्स भी प्राप्त हो सकते हैं जिनके कारण आप लम्बे समय तक व्यस्त रहते हुए अर्थलाभ कर सकते हैं | नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ ही किसी ऐसे स्थान पर आपका ट्रांसफर भी हो सकता है जहाँ आप पहले से जाना चाहते थे | यदि आपने अपने व्यवहार को नियन्त्रित नहीं रखा तो पारिवारिक स्तर पर वातावरण तनावपूर्ण रह सकता है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | सहकर्मियों से तथा पार्टनर के साथ किसी प्रकार की बहस आपके हित में नहीं रहेगी | अविवाहित हैं तो इस अवधि में आपका विवाह सम्बन्ध भी कहीं निश्चित हो सकता है |

तुला : आपका द्वितीयेश और सप्तमेश होकर मंगल का गोचर आपके तृतीय भाव में हो रहा है | जहाँ से आपके छठे भाव, नवम भाव और कर्मस्थान पर इसकी दृष्टियाँ हैं | यह गोचर उत्साहवर्द्धक तथा कार्य की दृष्टि से और आर्थिक दृष्टि से भाग्यवर्द्धक प्रतीत होता है | आपका स्वयं का व्यवसाय तो उसमें लाभ की सम्भावना है | नौकरी में हैं तो अचानक ही पदोन्नति के साथ अर्थलाभ की भी सम्भावना है | किन्तु साथ ही आपके छोटे भाई बहनों के साथ अथवा कार्यस्थल पर विरोध के स्वर भी मुखर हो सकते हैं | धार्मिक गतिविधियों में रुचि में वृद्धि की भी सम्भावना | आप सपरिवार किसी तीर्थस्थान की यात्रा के लिए भी जा सकते हैं | पॉलिटिक्स में जो लोग हैं उनके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | स्वास्थ्य की ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है |

वृश्चिक : आपका लग्नेश और षष्ठेश होकर मंगल का गोचर आपके द्वितीय भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके पञ्चम, अष्टम और नवम भावों पर मंगल की दृष्टियाँ रहेंगी | आपके लिए अचानक ही नौकरी में पदोन्नति तथा मान सम्मान में वृद्धि के संकेत प्रतीत होते हैं | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें उन्नति तथा आर्थिक लाभ की सम्भावना भी की जा सकती है | किन्तु साथ ही गुप्त विरोधियों की ओर से भी सावधान रहने की आवश्यकता है | सम्बन्धों में मधुरता बनाए रखने के लिए वाणी पर तथा स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए खान पान पर ध्यान रखने की आवश्यकता है | हाँ आपकी प्रभावशाली वाणी का लाभ आपको अपने कार्य में अवश्य प्राप्त हो सकता है | किसी वसीयत के माध्यम से आपको लाभ की सम्भावना है | आपकी सन्तान के लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | धार्मिक तथा आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है |

धनु : आपकी राशि के लिए पंचमेश तथा द्वादशेश होकर मंगल का गोचर आपकी लग्न में ही हो रहा है और आपके चतुर्थ, सप्तम और अष्टम भावों को देख रहा है | परिवार में किसी नवीन सदस्य के आगमन की सम्भावना है अथवा किसी बच्चे का जन्म भी इस अवधि में हो सकता है | आप कोई नया घर बेचकर उसमें शिफ्ट कर सकते हैं | प्रॉपर्टी के व्यवसाय से सम्बद्ध लोगों के लिए, डॉक्टर्स तथा मीडिया से सम्बद्ध लोगों के लिए और पॉलिटिक्स के क्षेत्र से सम्बद्ध लोगों के लिए यह गोचर विशेष रूप से अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी सन्तान के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | विवाह के लिए भी समय अनुकूल प्रतीत होता है | विवाहित हैं तो दाम्पत्य जीवन में प्रगाढ़ता के संकेत प्रतीत होते हैं | आप सपत्नीक कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम भी बना सकते हैं | स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है | स्वभाव में चिडचिडापन आ सकता है अतः योग ध्यान का अभ्यास आपके लिए आवश्यक है |

मकर : आपके चतुर्थेश और एकादशेश का गोचर आपके बारहवें भाव में हो रहा है जहाँ से आपके तीसरे, छठे तथा सातवें भावों पर मंगल की दृष्टि है | आपके लिए यह गोचर अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | स्वास्थ्य का ध्यान रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है | इस अवधि में आप सपरिवार कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम भी बना सकते हैं | आप स्वयं अथवा आपकी सन्तान भी विवाह करके अथवा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहीं दूर जा सकती है | यात्राओं के दौरान किसी प्रकार की दुर्घटना अथवा चोरी आदि के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता है | आपके छोटे भाई बहनों के लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है, किन्तु उनके साथ आपके सम्बन्धों में कुछ तनाव भी उत्पन्न हो सकता है | जीवन साथी तथा सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है |

कुम्भ : आपके लिए आपके तृतीयेश और दशमेश का गोचर आपके लाभ स्थान में हो रहा है तथा वहाँ से दूसरे, पाँचवें और छठे भावों पर उसकी दृष्टियाँ हैं | यह गोचर आपके स्वयं के लिए तथा आपकी सन्तान के लिए अनुकूल प्रतीत होता है तथा उसकी ओर से कोई शुभ समाचार इस अवधि में प्राप्त हो सकता है | किन्तु सन्तान के साथ बहस सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है | आर्थिक स्थिति में दृढ़ता की सम्भावना की जा सकती है | किसी घनिष्ठ मित्र के माध्यम से कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स भी प्राप्त हो सकते हैं | किन्तु ऐसे मित्रों तथा सम्बन्धियों को पहचान कर उनसे दूरी बनाने की आवश्यकता होगी जो आपसे ईर्ष्या रखते हैं | नौकरी की खोज में हैं तो उसमें भी सफलता प्राप्त हो सकती है | विद्यार्थियों के लिए यह समय अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है | स्वास्थ्य की दृष्टि से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किसी पुरानी बीमारी से मुक्ति भी इस अवधि में सम्भव है |

मीन : आपके लिए आपका द्वितीयेश और भाग्येश होकर मंगल का गोचर आपके दशम भाव में हो रहा है तथा वहाँ से आपकी लग्न को और चतुर्थ तथा पञ्चम भावों को देख रहा है | आपके लिए उत्साह में वृद्धि के साथ ही कार्य में उन्नति के संकेत भी हैं | नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ ही आय में वृद्धि के भी संकेत हैं | किसी पुरूस्कार आदि की प्राप्ति की सम्भावना भी इस अवधि में की जा सकती है | अधिकारियों तथा सहकर्मियों का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी आप वृद्धि कर सकते हैं अथवा कोई नई ब्रांच खोल सकते हैं | आपकी सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | आप स्वयं भी उच्च शिक्षा के लिए प्रयास कर सकते हैं | माता जी के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है | परिवार में कार्यस्थल पर किसी भी बहस से बचने का प्रयास आवश्यक है |

अन्त में, ग्रहों के गोचर अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं | सबसे प्रमुख तो व्यक्ति का अपना कर्म होता है | तो, कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहें यही कामना है…

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2020/02/07/mars-transit-in-sagittarius/

 

आसन को सुविधाजनक बनाना – स्वामी वेदभारती जी

ध्यान के आसन को और अधिक सुविधाजनक बनाने के कुछ सुझाव :

अभी तक हम ध्यान के लिए उपयुक्त आसनों के विषय में चर्चा कर चुके हैं | अब आगे, एक अनुकूल आसन का चयन तो हमने कर लिया, लेकिन यदि उसे और अधिक सुविधाजनक बनाना हो तो उसके लिए क्या करना चाहिए…

यदि आप तह किये हुए कम्बल को ज़मीन पर गद्दे की भाँति रखकर उस पर बैठते हैं तो आपके लिए ज़मीन पर बैठना सरल हो जाएगा | या फिर एक मोटा कुशन अथवा तकिया कूल्हों के नीचे रख सकते हैं जिससे कि शरीर का वह भाग भूमि से तीन चार इंच ऊपर उठ जाए | इस विधि से कूल्हों को उठाने से कूल्हों के जोड़ों ध्यान का आसनऔर घुटनों पर दबाव कम हो जाता है | इस विधि से आसन में बैठने पर आप आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन का अनुभव करेंगे | कूल्हों के नीचे मोटा कुशन रखने से आप अपनी रीढ़ को भी सीधा रख सकते हैं | जिस आसन पर आप बैठे हों वह स्थिर हो लेकिन कठोर न हो, न ही इधर उधर हिलने डुलने वाला हो | आसन इतना ऊँचा भी न हो कि आपके शरीर की स्थिति में बाधक हो |

जैसे जैसे आपके शरीर में लचीलापन आता जाएगा और बैठने में आपको सुविधा का अनुभव होने लगेगा आप पतले कुशन अथवा सीधे ज़मीन पर बैठकर भी ध्यान के अभ्यास कर सकेंगे | आसन जैसा भी हो इतना ध्यान रहे कि आपका मेरुदण्ड सीधा रहे और उसमें बल न पड़ने पाए | अन्यथा आपको आसन लगाने में असुविधा होगी | आरम्भ में मोटे कुशन के बिना रीढ़ को सीधा रखना कठिन होता है | अपने आसन में अभ्यस्त होने के लिए धैर्य रखिये | आप देखेंगे कि धीरे धीरे आपका शरीर लचीला होता जा रहा है और तब आप लम्बी अवधि के लिए भी ध्यान के लिए सुविधापूर्वक बैठ सकते हैं |

शरीर को खींचने (Stretch) के अभ्यास और हठयोग के आसनों से भी आपके शरीर में लचीलापन लाने में सहायता मिलेगी और आप ध्यान में बैठने में सुविधा का अनुभव करने लगेंगे |

ध्यान लेटकर क्यों नहीं करना चाहिए :

कुछ विशेष कारणों से आपको लेटकर ध्यान करने की सलाह नहीं दी जाती है | जिनमें सबसे प्रमुख कारण ध्यान के लिए आसनहै कि इस स्थिति में आपको बार बार नींद आ सकती है और आपके लिए चैतन्य स्थिति में बने रहना कठिन हो सकता है | निश्चित रूप से, यदि आपमें आलस्य है अथवा आप सो रहे हैं तो इस स्थिति में आप ध्यान लगा ही नहीं सकते |

एक और विशेष कारण ये है कि जब ध्यान की स्थिति में गहनता आती है उस समय आवश्यक हो जाता है कि आपका मेरुदण्ड यानी रीढ़ सीधी रहे, क्योंकि इससे एक विशेष प्रकार की ऊर्जा को शरीर में ऊपर की ओर प्रवाहित होने में सहायता मिलती है |

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/12/16/meditation-and-its-practices-26/

सूर्य का धनु राशि में गोचर

सोमवार 16 दिसम्बर यानी पौष कृष्ण पञ्चमी को कौलव करण और वैधृति योग में दिन में 3:28 के लगभग पर सूर्य का संक्रमण धनु राशि में और मूल नक्षत्र पर हो जाएगा | धनु राशि में भ्रमण करते हुए भगवान भास्कर 29 दिसम्बर को पूर्वाषाढ़ और ग्यारह जनवरी को उत्तराषाढ़ नक्षत्र पर विचरण करते हुए अन्त में चौदह जनवरी को अर्द्धरात्र्योत्तर दो बजकर नौ मिनट के लगभग मकर राशि में प्रस्थान कर जाएँगे | धनु राशि में भ्रमण करते हुए सूर्यदेव को निरन्तर शनि और गुरु के साथ ही केतु का भी साथ मिलेगा, जिनमें गुरु सूर्य का मित्र ग्रह है तो शनि और केतु शत्रु ग्रह | इस बीच 26 दिसम्बर को वलयाकार सूर्य ग्रहण भी है | सूर्य की अपनी राशि सिंह के लिए धनु राशि पञ्चम भाव है तथा सूर्य की उच्च राशि मेष से नवम भाव है | इसी प्रकार धनु राशि के लिए सूर्य नवमेश है | साधारण तौर पर हम कह सकते हैं कि मेष, धनु और सिंह राशि के जातकों के लिए यह गोचर अनुकूल रह सकता है | जानने का प्रयास करते हैं सूर्य के धनु राशि में गोचर के सभी राशियों के जातकों पर सम्भावित प्रभाव क्या हो सकते हैं…

इस बीच पन्द्रह दिसम्बर को संकट चतुर्थी, 21 को भगवान पार्श्वनाथ जयन्ती, 22 को सफला एकादशी, 23 को सोम प्रदोष, 6 जनवरी को पौष शुक्ल एकादशी, 8 को प्रदोष व्रत और 10 को पौष पूर्णिमा है – सभी को इन सभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएँ…

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | साथ ही, किसी एक ही ग्रह के गोचर के आधार पर स्पष्ट फलादेश नहीं किया जा सकता | उसके लिए योग्य Astrologer द्वारा व्यक्ति की कुण्डली का विविध सूत्रों के आधार पर व्यापक अध्ययन आवश्यक है |

मेष : मेष राशि सूर्य की मित्र राशि है और यहाँ आकर सूर्य उच्च का हो जाता है | मेष राशि के लिए सूर्य पंचमेश होकर नवम भाव में राश्यधिपति के साथ ही गोचर कर रहा है | जो न केवल अपने लिए बल्कि आपकी सन्तान और पिता के लिए भी भाग्यवर्द्धक है | आपको किसी प्रकार के सम्मान आदि के लिए भी प्रस्तावित किया जा सकता है अथवा आपकी पदोन्नति हो सकती है | परिवार में कोई शुभ कार्य हो सकता है | किसी प्रकार का पूजा अनुष्ठान आदि का आयोजन किया जा सकता है | आप सपरिवार तीर्थयात्रा पर जाने का प्लान भी बना सकते हैं | आप उच्च शिक्षा के लिए भी अग्रसर हो सकते हैं | अविवाहित हैं तो विवाह बन्धन में बंध सकते हैं | किन्तु सम्बन्धित व्यक्ति की भली भाँति जाँच पड़ताल अवश्य करा लें |

वृषभ : वृषभ राशि से धनु राशि अष्टम भाव में आ जाती है और सूर्य चतुर्थेश होकर धनु में अष्टम भाव में गोचर कर रहा है जहाँ चतुर्थेश के साथ ही योगकारक शनि भी विद्यमान है | आपके लिए यह गोचर अनुकूल तो प्रतीत होता है, किन्तु पारिवारिक स्तर पर अचानक ही कुछ ऐसी घटनाएँ घट सकती हैं जिनके प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं | कार्य स्थल पर भी किसी प्रकार के विरोध का सामना अचानक ही करना पड़ सकता है | अपनी जीवन शैली में सुधार करेंगे और अपने आचरण को शुद्ध रखेंगे तो किसी भी प्रतिकूल समस्या से बच सकते हैं | ध्यान प्राणायाम आदि में आपकी रुचि बढ़ सकती है | अपने तथा अपने माता पिता के स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है | ड्राइविंग के समय सावधान रहने की आवश्यकता है | आदित्य हृदय स्तोत्र अथवा गायत्री मन्त्र का जाप आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है |

मिथुन : आपके लिए तृतीयेश होकर सूर्य धनु राशि में सप्तम भाव में योगकारक गुरु तथा अष्टमेश और नवमेश शनि के साथ गोचर कर रहा है | राहु-केतु के मध्य है | इस गोचर को बहुत अधिक अनुकूल नहीं कहा जा सकता | विशेष रूप से जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का मतभेद हो सकता है | यदि पार्टनरशिप में कार्य कर रहे हैं तो वहाँ भी सम्बन्धों में किसी प्रकार का वैमनस्य उत्पन्न हो सकता है | आप ज़रा सी बात पर भड़क सकते हैं, जो सम्बन्धों के लिए हानिकारक होगा | इस सबसे बचना है तो आपको अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखना होगा | आपके लिए भी आदित्य हृदय स्तोत्र अथवा गायत्री मन्त्र का जाप करना उचित रहेगा |

कर्क : कर्क राशि के लिए सूर्य द्वितीयेश होकर धनु राशि में छठे भाव में षष्ठेश तथा सप्तमेश और अष्टमेश के साथ गोचर कर रहा है | इस गोचर को एक बहुत शक्तिशाली गोचर के रूप में देखा जाता है | आपके जितने भी छिपे हुए अथवा प्रत्यक्ष विरोधी अथवा शत्रु हैं उन सबके लिए समस्या उत्पन्न हो सकती है | अपने विरोधियों पर आपको विजय प्राप्त हो सकती है | यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसकी भी समाप्ति होकर अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकता है | आपकी वाणी ओज पूर्ण रहेगी तथा उसका प्रभाव दूसरों पर होगा | स्वास्थ्य के लिए पित्त से सम्बन्धित किसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है इसलिए अपने खान पान की आदत में सुधार करना आवश्यक है | साथ ही किसी को इस समय उधार न दें | किसी document पर sign करने से पूर्व अच्छी तरह उसका अध्ययन अवश्य कर लें | ध्यान रहे, किसी भी समस्या से बचने के लिए सबसे अच्छा उपाय होता है सोच समझकर आगे बढ़ना |

सिंह : आपके लिए सूर्य आपका लग्नेश होकर धनु राशि में राश्यधिपति और षष्ठेश तथा सप्तमेश के साथ पंचम भाव में गोचर कर रहा है | यह गोचर आपके लिए आर्थिक तथा कार्य की दृष्टि से अनुकूल प्रतीत होता है | अध्ययन के लिए, उच्च शिक्षा के लिए समय अनुकूल है | जो लोग मन्त्र आदि को सिद्ध करना चाहते हैं अथवा ध्यान अध्यात्म आदि के मार्ग पर अग्रसर हैं उनके लिए यह गोचर अत्यन्त अनुकूल है | किन्तु गर्भवती महिलाओं को किसी भी समस्या से बचने के लिए निश्चित समय पर डॉक्टर से जाँच कराना और डॉक्टर के दिए निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन की सलाह अवश्य दी जाएगी | सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखना आवश्यक है | वैवाहिक जीवन में सम्भव है कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ जाए | अविवाहित हैं तो कोई प्रेम सम्बन्ध विवाह में परिणत हो सकता है | किन्तु सम्बन्धित व्यक्ति के विषय में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद आगे बढें | प्रातः आदित्य हृदय स्तोत्र के साथ सूर्य देव का अभिषेक आपके लिए उत्तम रहेगा |

कन्या : आपके लिए सूर्य आपकी लग्न से द्वादशेश होकर धनु राशि में आपके चतुर्थ भाव में चतुर्थेश तथा पंचमेश और षष्ठेश के साथ गोचर कर रहा है | इस प्रकार के गोचर से संकेत मिलता है कि यदि आप कहीं यात्रा पर गए हुए हैं तो किसी पारिवारिक कार्य के लिए घर वापस लौट सकते हैं | परिवार में किसी प्रकार के तनाव से बचने के लिए आपको अपने Temperament को नियन्त्रण में रखना होगा | आर्थिक दृष्टि से समय अनुकूल प्रतीत होता है | प्रॉपर्टी को बेचने के लिए समय अनुकूल प्रतीत होता है किन्तु खरीदने में अधिक धन का व्यय हो सकता है | लीवर से सम्बन्धित किसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है | ड्राइविंग करते समय सावधान रहने की आवश्यकता है | साथ ही यदि माता पिता वृद्ध हैं तो उनके स्वास्थ्य के प्रति भी सावधान रहने की आवश्यकता है | आपकी सन्तान के लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है तथा उसके जीवन में यदि कोई समस्या है तो उसका भी समाधान इस अवधि में सम्भव है | सन्तान के साथ व्यर्थ की बहस से बचने की आवश्यकता है |प्रातः उठकर सूर्य को जल देना तथा योग ध्यान आदि के अभ्यास आपके लिए अनुकूल रहेगा |

तुला : तुला राशि वालों के लिए सूर्य एकादशेश हो जाता है | एकादशेश होकर धनु राशि में तृतीय भाव में गोचर कर रहा है तृतीयेश तथा योगकारक शनि के साथ | आपके भाई बहनों को आपसे अर्थ लाभ की सम्भावना है | साथ ही मित्रों और अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको प्राप्त होता रहेगा | कुछ नए मित्र भी बन सकते हैं जो आपके लिए कुछ नए प्रोजेक्ट्स लेकर आएँगे जिनके कारण आपको अर्थलाभ की भी सम्भावना है | यदि आपकी कुण्डली में अन्य अनुकूलताएँ इस समय हो रही हैं तो आप इन नए प्रोजेक्ट्स के साथ आगे बढ़ सकते हैं | कार्याधिक्य के कारण आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, अतः बीच बीच में कार्य से अवकाश लेने की भी आवश्यकता है | साथ ही भाई बहनों के साथ किसी प्रकार की बहस से बचें अन्यथा विवाद लम्बा खिंच सकता है |

वृश्चिक : वृश्चिक राशि वालों के लिए सूर्य उनके दशम भाव का स्वामी है | दशमेश सूर्य धनु राशि में द्वितीय भाव में गोचर कर रहा है जो कार्य की दृष्टि से तथा अर्थ लाभ की दृष्टि अनुकूल है और आपका भविष्य भी आर्थिक रूप से सुरक्षित होने का समय प्रतीत होता है | कार्यक्षेत्र में अनुकूलता बनी रहने की सम्भावना है | किन्तु शनि और राहु-केतु की उपस्थिति के कारण आपके मन में अपने परिवार और कार्य को लेकर कुछ द्विविधाएँ हो सकती हैं | सूर्यदेव की उपासना तथा ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास इन द्विविधाओं से बचने के उपाय हैं | आपकी वाणी इस समय विशेष रूप से ओजपूर्ण रहेगी जिसका आपको लाभ तथा यश भी प्राप्त होगा | आँखों से सम्बन्धित किसी समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है |

धनु : आपके लिए सूर्य आपका भाग्येश होकर लग्न में लग्नेश और द्वितीयेश के साथ गोचर कर रहा है जो भाग्यवर्द्धक है | आवश्यकता है अपनी योग्यताओं और सम्भावनाओं पर भली भाँति पुनर्विचार करके उनका समय पर सदुपयोग करने की | आप कभी कभी अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को लेकर आशंकित हो जाते हैं | अपने विचारों और कर्म से नैराश्य का भाव त्याग कर आशावादी बनिए | समय का लाभ उठाइये क्योंकि समय हाथ से निकल जाए तो फिर वापस नहीं आता | सरकारी स्तर पर, उच्चाधिकारियों से तथा पिता की ओर से अनुकूल सहयोग प्राप्त हो सकता है | धन और यश में वृद्धि का समय है | विवाहित हैं तो जीवन साथी का Temperament कुछ उग्र हो सकता है, आवश्यकता है आप अपना Temperament शान्त रखें और शान्ति के साथ अपनी बात जीवन साथी को समझाने का प्रयास करें | स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ सावधान रहने की आवश्यकता है | मानसिक तनाव से बचने के लिए प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें |

मकर : आपके लिए सूर्य अष्टमेश होकर द्वादश भाव में गोचर कर रहा है जहाँ द्वादशेश और लग्नेश भी विद्यमान हैं | आपका लग्नाधिपति शनि है जो अष्टमेश सूर्य का शत्रु भी है | यह गोचर आपके लिए शुभ नहीं कहा जा सकता | आपको विशेष रूप से अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता है | कोई भी ऐसा कार्य मत कीजिये जिसके कारण आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो | साथ ही स्वास्थ्य सम्बन्धी अथवा पारिवारिक समस्याओं के कारण धन भी अधिक खर्च हो सकता है | अपनी गतिविधियों का निरीक्षण करके स्वयं को एक बेहतर इन्सान बनाने का प्रयास कीजिए | आपको किसी ऐसे स्थान की यात्रा करनी पड़ सकती है जहाँ जाने की आपकी इच्छा न हो और वहाँ जाकर आपका स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है | गायत्री मन्त्र का जाप आपके लिए उत्तम उपाय है |

कुम्भ : मकर राशि की ही भाँति कुम्भ राशि का स्वामी भी शनि है | सूर्य आपका सप्तमेश होकर आपके एकादश भाव में गोचर कर रहा है | शनि यद्यपि सूर्य का शत्रु ग्रह है, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि आपको अपने जीवन साथी के द्वारा अथवा आपके जीवन साथी को अर्थ लाभ भी हो सकता है | आपके व्यवसाय में भी वृद्धि हो सकती है | यदि किसी नौकरी में हैं तो आपकी पदोन्नति की भी सम्भावना है | अपने मित्रों के साथ मधुर व्यवहार रखेंगे तथा बॉस का सम्मान करेंगे तो उनसे व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत स्तर पर अनुकूलता प्राप्त हो सकती है | जीवन साथी की खोज इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | वाणी पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है |

मीन : मीन राशि वालों के लिए सूर्य षष्ठेश होकर दशम भाव अर्थात profession के भाव में गोचर कर रहा है | बहुत अच्छी स्थिति में गोचर कर रहा है | जितनी भी नकारात्मकता अथवा निराशा आपके विचारों अथवा कार्य के प्रति है वह सब इस अवधि में समाप्त हो सकती है | अधिकारी वर्ग की ओर से लाभ की भी सम्भावना है | आपकी सभी योजनाएँ पूर्ण हो सकती हैं अथवा उनमें अनुकूल दिशा में प्रगति हो सकती है | नौकरी की तलाश में हैं अथवा कोई नया व्यवसाय आरम्भ करना चाहते हैं तो उसमें भी सफलता प्राप्त होने की सम्भावना है | यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो या तो उससे मुक्ति प्राप्त हो सकती है अथवा उसके अनुकूल दिशा में आगे बढ़ने की सम्भावना है | किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो उस दिशा में भी सफलता प्राप्त करने की सम्भावना की जा सकती है |

अन्त में, सदा की भाँति इतना अवश्य कहेंगे कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहिये – क्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैं…

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/12/14/sun-transit-in-sagittarius-2/

 

पद्मासन

ध्यान और इसका अभ्यास

ध्यान के लिए उपयुक्त आसनों पर वार्ता के क्रम में हमने मैत्री आसन, सुखासन, स्वस्तिकासन, वज्रासन और सिद्धासन पर बात की | कुछ अन्य आसन भी ध्यान में बैठने के लिए अनुकूल हो सकते हैं | जैसे:

पद्मासन : सिद्धासन की ही भाँति पद्मासन की सलाह भी प्रायः साधारण साधकों को नहीं दी जाती | क्योंकि यदि इसे उचित विधि से नहीं किया गया तो इसका कोई लाभ नहीं होगा | कोई भी साधारण या आरम्भिक स्तर का साधक इस आसन में पूर्ण रूप से उचित और सुविधाजनक स्थिति में नहीं बैठ सकता – विशेष रूप से इस आसन में बन्ध लगाना बहुत कठिन होता है |

पद्मासन योग का एक उत्तम आसन है | किन्तु कुशल योगी और साधक भी वास्तव में सिद्धासन का प्रयोग करते हैं | पद्मासन यौगिक प्रक्रिया का एक प्रतीक माना जा सकता है | जिसका सार यही है कि जिस प्रकार कमल कीचड़ के अन्दर रहता है किन्तु अपनी दिव्य सुगन्ध पानी की सतह पर निरन्तर प्रसारित करता रहता है उसी प्रकार से संसार में निर्लिप्त भाव से रहना चाहिए |

आजकल पद्मासन शरीर के निचले भागों को लचीला कोमल बनाने के लिए अभ्यास में लाया जाता है न कि ध्यान के पद्मासनलिए | क्योंकि अधिकाँश साधकों को इस आसन में बैठकर ध्यान करने में असुविधा का अनुभव होता है | शारीरिक असुविधाएँ और कष्ट के कारण अधिकाँश लोगों को ध्यान की स्थिति में पहुँचने में बाधा होना स्वाभाविक है | हमारे विचार से विद्यार्थियों को ध्यान के अभ्यास के लिए दूसरे सरल आसनों में बैठना चाहिए जिनमें स्थिरता भी बनी रहे और जो सुविधाजनक भी हों |

संक्षेप में, ध्यान के अधिकाँश विद्यार्थियों के लिए पहले तीन आसनों – मैत्री आसन, सुखासन और स्वस्तिकासन में से किसी एक को अपनाना चाहिए | किसी एक आसन का विधिवत अभ्यास कीजिए और ध्यान के नियमित आसन के रूप में उसका प्रयोग कीजिए | ऐसा करने पर आप पाएँगे कि वह विशेष आसन आपके लिए अधिक सुविधाजनक, स्थिर और दृढ़ हो जाएगा |

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/12/13/meditation-and-its-practices-25/

दिनचर्या और जीवन शैली

गत सात दिसम्बर को WOW India की ओर से Lifestyle diseases यानी एक अननुशासित दिनचर्या के कारण होने वाली बीमारियों पर चर्चा के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया | आयोजन सफल रहा | लेकिन उसके बाद जब हमने रिपोर्ट पोस्ट की तो कुछ लोगों ने बात की कि आज के समय में जो लोग Working हैं, यानी कहीं नौकरी आदि करते हैं उनके लिए किसी भी दिनचर्या और जीवन शैली का पूरी शिद्दत से पालन करना असम्भव हो जाता है उनके कार्यभार और समय के अभाव के कारण | उनकी बात से हम सहमत हैं – बहुत से लोगों को – महिलाओं को भी और पुरुषों को भी – कई बार ऐसी नौकरी होती है जहाँ उन्हें शिफ्ट ड्यूटी करनी पड़ती है – कभी दिन की तो कभी रात की | इसलिए ऐसे लोगों का प्रश्न बिल्कुल सही है कि कैसे एक अनुशासित दिनचर्या और एक स्वस्थ जीवन शैली को अपनाया जा सकता है ?

यहाँ सबसे पहले तो एक बात कहना चाहेंगे कि एक आदर्श दिनचर्या और जीवन शैली अपनाकर हम केवल अपने स्वास्थ्य को ही अच्छा नहीं बनाए रखते, अपितु मानसिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक विभिन्न स्तरों पर आवश्यकतानुरूप एक सन्तुलित जीवन जी कर एक सुखद परिवार और सुखद समाज के निर्माण में भी योगदान दे सकते हैं |

अब बात करते हैं कि दिनचर्या और जीवन शैली कहते किसे हैं | दिनचर्या मन और शरीर के सन्तुलन के साथ एक ऐसा दैनिक कार्यक्रम है जो प्रकृति के चक्र को ध्यान में रखकर किया जाता है | यही कारण है हर व्यक्ति की अपनी एक विशेष दिनचर्या होती है और वह हमारी जीवन शैली का मूल होती है | यानी हम कह सकते हैं कि हमारी दिनचर्या हमारी जीवन शैली का ही एक अभिन्न अंग है | एक आदर्श दिनचर्या के लिए स्वस्थ जीवन शैली की आवश्यकता है और एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए अनुशासित दिनचर्या की आवश्यकता है |

हमारी दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए कि जिससे हमारा स्वास्थ्य बेहतर रहे | और जब स्वास्थ्य की बात करते हैं तो Routine and lifestyleशारीरिक, मानसिक, सामाजिक सभी प्रकार के स्वास्थ्य के विषय में बात करते हैं | तो, यदि कुछ सरल से उपायों को अनुशासनात्मक रूप से अपनी हमारी जीवन शैली भी अपने आप स्वस्थ होती जाती है | और जब हमारी दिनचर्या पूर्णतः अनुशासित होगी तथा स्वस्थ जीवन शैली का पालन करेंगे तो लक्ष्य प्राप्ति में कोई समस्या नहीं होगी |

इसमें सबसे पहले आता है समय का ध्यान रखना – यदि हमने अपने समय को अच्छी तरह व्यवस्थित कर लिया – जिसे सरल भाषा में टाइम मैनेजमेंट कहा जाता है – तो किसी प्रकार की भागमभाग की आवश्यकता ही नहीं होगी और हमारी दिनचर्या सुचारु रूप से चलती रहेगी |

सरल और स्वस्थ दिनचर्या से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं, दोष सन्तुलित होते हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और इन का आरम्भ ताज़गीभरा रहने से सारा दिन ही आनन्द से व्यतीत होता है और हम उस के अपने समस्त कर्म भली भाँति सम्पन्न करने में सक्षम हो सकते है |

शेष आगे…. पूर्णिमा

https://www.wowindia.info/health-awareness/2019/12/11/routine-and-lifestyle/

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ध्यान के कुछ अन्य आसन – स्वामी वेदभारती जी

ध्यान के कुछ अन्य आसन :

ध्यान के लिए उपयुक्त आसनों पर वार्ता के क्रम में हमने मैत्री आसन, सुखासन, स्वस्तिकासन और सिद्धासन पर बात की | कुछ अन्य आसन भी ध्यान में बैठने के लिए अनुकूल हो सकते हैं | जैसे:

वज्रासन : कुछ लोग जिनके कूल्हों अथवा घुटनों में किसी प्रकार की समस्या हो वे ऐसे किसी भी आसन में बैठने में कठिनाई का अनुभव कर सकते हैं जिनमें टाँगों को एक दूसरे के आर पार करना पड़ता हो | वे लोग टखनों के ऊपर घुटनों को रखकर भी ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं | इसे “वज्रासन” कहा जाता है |वज्रासन

सीधे ज़मीन पर इस आसन में यदि बैठेंगे तो पैरों और टखनों पर अधिक ज़ोर पड़ेगा जिसके कारण माँसपेशियों में कोई समस्या हो सकती है | यदि आप इस आसन में बैठना अधिक पसन्द करते हैं तो आपको बता दें आजकल बाज़ार में इसके लिए लकड़ी की बेंच भी उपलब्ध है | आप एक बेंच ख़रीद कर ला सकते हैं | इस बेंच पर सीधे बैठ सकते हैं जिससे आपके पैरों और टखनों पर कम जोर पड़ेगा | इस आसन से लाभ एक सीमा तक ही सम्भव है | जैसे : लम्बी अवधि के ध्यान में इस आसन पर बैठने में शरीर में स्थिरता का अभाव रहता है और शरीर एक ओर को झुकने अथवा झूलने लगता है | फिर भी जिन साधकों को शारीरिक समस्याएँ इस प्रकार की हैं उनके लिए यही आसन उचित रहेगा |

सिद्धासन : इसकी चर्चा पहले भी की है | यह कुछ ऐसे साधकों को सिखाया जाता है जो ध्यान के अन्य आसनों के अभ्यस्त हो चुके हैं, साधारण साधकों के लिए यह आसन न तो उपयोगी ही है और न ही वे इसे सरलता से लगा सकते हैं | क्योंकि पद्मासन की भाँति ही इस आसन के लिए भी शरीर को एक विशेष स्थिति में रखने की आवश्यकता होती है | और यह तभी सहायक हो सकता है जब इसे नियमबद्ध और उचित रीति से किया जाए | यदि आप इस आसन में उचित और सुविधाजनक रीति से नहीं बैठ पाते तो आपको इससे लाभ होने की अपेक्षा समस्याएँ ही अधिक उत्पन्न होंगी | ध्यान के प्रारम्भिक साधकों के लिए अथवा संसारी लोगों के लिए सिद्धासन का सुझाव देना उचित नहीं होगा |

जो लोग ध्यान में पारंगत हैं अथवा ध्यान को जिन्होंने अपने जीवन में प्राथमिकता दी है वे धीरे धीरे इस आसन में बैठना सीख सकते हैं | हाँ जो लोग समाधि की अवस्था को प्राप्त होना चाहते हैं उन्हें निश्चित रूप से ध्यान के समय इस आसन का अभ्यास करना चाहिए | ध्यान में पारंगत साधक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस आसन में बैठने का अभ्यास डाल सकते हैं | जब एक कुशल छात्र बिना किसी कष्ट के एक ही समय में तीन घंटे से अधिक अवधि के लिए बैठने लगता है तब “आसनसिद्धि” हो जाती है | लेकिन प्रारम्भिक विद्यार्थी जो अभी तक इस आसन के लिए तैयार नहीं हैं वे इस आसन में असुविधा का ही अनुभव करेंगे | जिस आसन का अभ्यास आपने नहीं किया है ऐसे आसन में बैठने के प्रयास में माँसपेशियों और नसों में खिंचाव जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं |

सिद्धासन में बैठने के लिए मूलबन्ध – जिसमें गुदा की माँसपेशियों को सँकुचित करके भीतर की ओर खींचा जाता है – सिद्धासनलगाते हुए बाएँ पैर की एड़ी को मूलाधार – अंडकोष – पर रखिये | अब दूसरे पैर की एड़ी को जननेन्द्रिय के ऊपर प्यूबिक बोन (Pubic Bone) यानी जँघा के ऊपर की अस्थि पर रखिये | पैरों और टाँगों को इस तरह रखिये कि टखने एक सीध में अथवा एक दूसरे को स्पर्श कर सकें | दाहिने पैर की अँगुलियों को बाँयी जँघा और पिण्डली के बीच में कुछ इस भाँति रखिये कि केवल बड़ी अँगुली दिखाई दे | अब बाँए पैर की अँगुलियों को उठाकर दाहिनी जँघा और पिण्डली के बीच में इस प्रकार रखें कि केवल बड़ी अंगुलि दिखाई दे | दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखिये |

ध्यान रहे, हम इस आसन की सलाह नहीं देते – उन लोगों को छोड़कर जो किसी योग्य प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में इसे सीख रहे हैं | क्योंकि अगर इसे ठीक से नहीं किया गया तो जैसा ऊपर कहा गया है – साधकों को किसी प्रकार की शारीरिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है | परम्परा से तो ये आसन उन व्यक्तियों को सिखाया जाता है जो सन्यासी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं | लेकिन यह सोचना भी उचित नहीं होगा कि केवल पुरुष ही इस आसन को लगा सकते हैं, कम सुविधाजनक होते हुए भी महिला साधिकाएँ और नन्स इस आसन के अभ्यास करती हैं |

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/12/09/meditation-and-its-practices-24/

ध्यान के लिए सुविधाजनक आसन – स्वामी वेदभारती जी

अपने लिए सुविधाजनक आसन का चयन :

टाँगों में लचीलेपन के अभाव में सम्भव है कुछ प्रारम्भिक साधकों को सिद्धासन आरम्भ में सुविधाजनक न लगे | आप टाँगों को आर पार मोड़कर ऐसा कोई भी आसन बना सकते हैं जिससे आपके शरीर को इधर उधर झूले बिना, हिले डुले बिना स्थिर होकर बैठने में सहायता मिले, अथवा जैसा कि पहले बताया गया – आरम्भ में आप मैत्री आसन में भी बैठ सकते हैं | यहाँ पुनः इस बात को दोहराना आवश्यक हो जाता है कि जिस भी आसन में आप बैठें – सबसे पहले आपका सिर गर्दन और धड़ एक सीध में होना चाहिए जिससे आपकी रीढ़ सीढ़ी रहे, उसके बाद ही टाँगों को किसी विशेष प्रकार से रखिये |

कुछ अभ्यासियों को अगले आसनों को सीखने की इतनी शीघ्रता होती है कि भली भाँति सीखे बिना ही उन्हें लगाना आरम्भ कर देते हैं | जिसका परिणाम यह होता है कि वे उचित रूप से नहीं बैठ पाते, क्योंकि वे कन्धों को ऊपर खींचकर कूबड़ सा बना लेते हैं जिससे रीढ़ में बल पड़ जाता है | ऐसा करने का दुष्परिणाम यह होगा कि आपके शरीर जो बैठने में असुविधा होगी और आपके श्वास की प्रक्रिया में बाधा पड़ेगी | साथ ही ध्यान की प्रगाढ़ता के लिए उपयोगी ऊर्जा के भीतरी स्रोत भी इससे अवरुद्ध हो जाएँगे |

कमर की माँसपेशियों के साथ समस्याएँ :

बचपन से ही ग़लत ढंग से चलने और बैठने के स्वभाव के कारण बहुत से लोगों का बैठने के ढंग – आसन यानी PosturesPosture ही बिगड़ चुका होता है | और इस कारण रीढ़ को सहारा देने वाली माँसपेशियाँ पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पातीं और आयु में वृद्धि के साथ साथ माँसपेशियों में बल पड़ना आरम्भ हो जाता है | जिससे उनके शरीर को ही नुकसान पहुँचता है | जब आप प्रथम बार ध्यान के लिए बैठना आरम्भ करते हैं तब सम्भव है आपको लगे कि आपकी कमर की माँसपेशियाँ दुर्बल हैं और कुछ मिनट बैठने के बाद ही आप आगे की ओर झुक जाते हैं |

यदि आप दिन भर बैठने, खड़े होने और चलने के समय अपने शरीर के अंगों की स्थिति पर ध्यान देना आरम्भ कर देंगे तो बहुत शीघ्र आप इस समस्या से मुक्ति पा सकते हैं | यदि आप अपने शरीर को ढीला ढाला या झुका हुआ पाते हैं तो अपनी मुद्रा सुधारें | ऐसा करने से आपकी कमर की माँसपेशियाँ भली भाँति कार्य करना आरम्भ कर देंगी | कुछ हठ योग के आसन जैसे भुजंगासन, नौकासन, धनुरासन और बालासन भी आपकी कमर की माँसपेशियों को बल देने में सहायक होंगे, जिससे वे माँसपेशियाँ आपकी रीढ़ के स्तम्भ को सहारा दे सकें |

कुछ अभ्यासार्थी जिनका बैठने का ढंग सही नहीं होता वे प्रायः पूछते हैं कि ध्यान के समय क्या दीवार का सहारा Sitting Posturesलिया जा सकता है ? आरम्भ में मुद्रा सीधी करने के लिए के लिए आप ऐसा कर सकते हैं, लेकिन किसी बाहरी सहारे पर अधिक समय तक निर्भर रहना उचित नहीं होगा | आरम्भ से ही पूर्ण एकाग्रता और नियमित अभ्यास के द्वारा आसन को ठीक करने का प्रयास करें | अपने किसी मित्र से कह सकते हैं कि वह देखकर बताए कि आपका आसन उचित है अथवा नहीं | अथवा शीशे में एक ओर से देखकर स्वयं ही अनुमान लगाने का प्रयास कीजिए | यदि आपकी रीढ़ पूर्ण रूप से सीध में होगी तो अपनी कमर पर हाथ फिराने पर रीढ़ की हड्डी में उभारों पर गाँठ का अनुभव नहीं होगा |

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ध्यान के आसन – स्वामी वेदभारती जी

ध्यान में बैठने के लिए आसन (Posture) :

बहुत सारे आसन हैं जिनमें आपकी रीढ़ सीढ़ी रहती है और आप आराम से सुविधाजनक स्थिति में अपनी टाँगों को किसी प्रकार से तोड़े मरोड़े बिना बैठे रह सकते हैं | वास्तव में ध्यान में हाथों अथवा पैरों पर ध्यान देने की अपेक्षा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपकी रीढ़ सीधी हो | और इस आसन में बैठने के लिए सबसे सरल आसन है

मैत्री आसन :मैत्री आसन

इस आसन में आप किसी कुर्सी अथवा बेंच पर बैठ सकते हैं | आपके पैर फर्श पर सीधे रखे हों अथवा बेंच के ऊपर सुखासन में हों | इस आसन का प्रयोग कोई भी कर सकता है | यहाँ तक कि जिनके शरीर में लचीलापन नहीं होता अथवा जिन्हें भूमि पर बैठने में कठिनाई होती है वे लोग भी इस आसन में आराम से बैठ सकते हैं | इस आसन में बैठने से ध्यान के समय आपको किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव नहीं होगा |

सुखासन : यदि आपके शरीर में लचीलापन है तो आप एक वैकल्पिक आसन – सुखासन – में बैठना चाहेंगे | इसमें आप दोनों टाँगों को एक दूसरे के आर पार मोड़कर बैठते हैं | अर्थात एक पैर दूसरे पैर के घुटने के नीचे ज़मीन पर टिका होता है और दूसरे पैर का घुटना उस पैर पर आराम से रखा होता है | एक मोटे तह किये हुए कम्बल पर बैठिये जिससे आपके घुटनों और टखनों पर अधिक दबाव न पड़ने पाए | आपके ध्यान का आसन अर्थात जिस आसन या स्थान पर आप बैठे हैं वह स्थिर हो, किन्तु न तो अधिक कठोर हो और न ही हिलने डुलने वाला हो | यह आसन अधिक ऊँचा भी नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे आपके शरीर की स्थिति में व्यवधान उत्पन्न होगा |

यदि आपकी टाँगों में लचीलापन नहीं है अथवा जाँघ की माँसपेशियों में तनाव है तो आप देखेंगे कि आपके घुटने सुखासनज़मीन पर टिक नहीं पाते | इस स्थिति में कूल्हों के नीचे एक और कुशन अथवा तह किया हुआ एक और कम्बल लगा सकते हैं जिससे आपको बैठने में सहायता मिलेगी | आसन में बैठने से पहले यदि शरीर को खिंचाव देने वाले सरल से अभ्यास (Stretch Exercises) कर लिए जाएँ तो शरीर में लचीलापन बढाने में सहायता मिलती है जिससे आप और अधिक सुविधापूर्वक ध्यान के लिए बैठ सकते हैं | जिस भी आसन का आप चयन करें उसका नियमित रूप से अभ्यास कीजिए और उसे जल्दी जल्दी बदलने का प्रयास मत कीजिए | यदि आप नियमित रूप से एक ही आसन में बैठने का अभ्यास करते हैं तो हीरे धीरे वह आसन आपके लिए स्थिर और अधिक सुविधाजनक हो जाएगा |

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ध्यान के आसन – स्वामी वेदभारती जी

ध्यान के आसन (Posture)

ध्यान एक ऐसी सरल प्रक्रिया है कि जिसका आनन्द हर कोई ले सकता है | जैसा कि पहले भी बता चुके हैं – ध्यान के लिए शान्तचित्त होकर सुविधाजनक, आरामदायक और स्थिर आसन में बैठ जाएँ | शरीर को स्थिर करें, श्वास प्रक्रिया को स्थिर और लयबद्ध करें, और मन को स्थिर तथा केन्द्रित करें | ध्यान की इन तीनों प्रक्रियाओं के विषय में विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता है –

  • शरीर की स्थिति किस प्रकार होनी चाहिए कि वह ध्यान के समय विश्रान्त, स्थिर और सुविधापूर्ण स्थिति में रह सके |
  • श्वास प्रक्रिया को स्थिर और लयबद्ध करने की क्या आवश्यकता है और
  • इसे किस प्रकार किया जा सकता है |
  • मन को स्थिर और लक्ष्य पर किस प्रकार केन्द्रित किया जाए कि ध्यान की स्थिति स्वतः प्राप्त की जा सके |

ये तीन स्थितियाँ चेतना को शरीर के बाह्य स्तर से बहुत गहरी अन्तःचेतना अथवा सूक्ष्म स्तर तक ले जाती हैं | सबसे पहले शरीर की स्थिति…

ध्यान के लिए बैठने के आसन :

ध्यान के लिए उपयुक्त आसन में बैठने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है – आसन स्थिर हो, दृढ़ हो, आरामदायक हो और सुविधाजनक हो | यदि ध्यान के समय शरीर इधर उधर हिलता डुलता झूलता रहेगा, शरीर में कहीं खिंचाव या दर्द होगा तो ध्यान के अभ्यास में निश्चित रूप से बाधा पड़ेगी | कुछ लोग समझते हैं कि ध्यान के लिए पद्मासन जैसे कठिन आसन में बैठना आवश्यक है | किन्तु ऐसा नहीं है | ध्यान के आसन के लिए केवल एक बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है कि आप ऐसे आसन में बैठें कि आपका सर, गर्दन और धड़ एक सीध में हों जिससे आपको श्वास लेने में सुविधा हो और आप श्वास के आवागमन को अपने उदर में अनुभव कर सकें |

सिर, गर्दन और धड़ की स्थिति :

ध्यान के सभी आसनों में सिर और गर्दन बिल्कुल बीच में होने चाहियें ताकि गर्दन न तो इधर उधर झूल सके और न ही एक ओर को झुक सके | सिर को गर्दन से सहारा मिलना चाहिए और कन्धों अथवा गर्दन में किसी प्रकार का खिंचाव हुए बिना गर्दन कन्धों के ऊपर स्थिर रहे | चेहरा सामने की ओर और नेत्र धीरे से बन्द हों | नेत्रों को आराम से बिना किसी दबाव के अपने आप बन्द होने दें | दुर्भाग्य से कुछ लोगों को बताया जाता है कि ध्यान की प्रक्रिया में सिर के ऊपर एक विशेष बिन्दु पर एकटक देखना है | किन्तु ऐसा करने से नेत्रों की माँसपेशियों में खिंचाव पड़ता है और कभी कभी तो सिर में दर्द तक हो जाता है | योग की प्रक्रिया में ऐसे कुछ अभ्यास हैं जिनमें नेत्रों को किसी एक बिन्दु पर स्थिर करना होता है, किन्तु ध्यान की प्रक्रिया में ऐसा नहीं है | चेहरे की माँसपेशियों पर कोई खिंचाव डाले बिना उन्हें ढीला छोड़ देना है | मुँह भी बिना किसी प्रयास अथवा दबाव के आराम से बन्द होना चाहिए | श्वास का आवागमन नासारन्ध्रों (Nostrils) से होना चाहिए |

कन्धों, भुजाओं और हाथों की स्थिति :

ध्यान के सभी आसनों में आपके कन्धे और हाथ ढीले छोड़े हुए (Relaxed) हों और आराम से आपके घुटनों पर रखे हुए हों | आपकी कलाई इतनी ढीली पड़ी हुई हो कि अगर कोई उसे उठाना चाहे तो बिना किसी प्रयास के उठा सके | आपका अँगूठा और तर्जनी अँगुली हलके से कुछ इस तरह जुड़े हुए हों कि उनका घेरा बन जाए, जिसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि एक परिधि है जिसके भीतर ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है |

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धार्मिक विश्वास और त्याग भावना

धार्मिक विश्वास और त्याग भावना

हम प्रायः दो शब्द साथ साथ सुनते हैं – संस्कृति और धर्म | संस्कृति अपने सामान्य अर्थ में एक व्यवस्था का मार्ग है, और धर्म इस मार्ग का पथ प्रदर्शक, प्रकाश नियामक एवं समन्वयकारी सिद्धान्त है | अतः धर्म वह प्रयोग है जिसके द्वारा संस्कृति को जाना जा सकता है | भारत में आदिकाल से ही आदर्श व्यक्ति और आदर्श समाज के विकास के लिये धर्म का आश्रय लिया गया है | धर्म की प्रधानता, धार्मिक प्रेरणा एवं धार्मिक भावनाओं का अन्य सब प्रेरणाओं पर प्रभुत्व केवल भारतीय संस्कृति की ही विशेषता नहीं है, अपितु यह सदा से ही समस्त संसार में मानव मन तथा मानव समाज की सर्वमान्य अवस्था रही है | भारत ने सम्पूर्ण धर्म का मूल वेद को स्वीकार किया है, अतः भारतीय दृष्टि के अनुसार जो वेदानुकूल है, वेद सम्मत है, वही धर्म है | वेदज्ञों की स्मृति तथा शील ही धर्म है, और यह शील तेरह प्रकार का है – ब्रह्मण्यता, देव-पितृ भक्ति, सौम्यता, अनसूयता, मृदुता, मित्रता, प्रियवादिता, सत्यता, कृतज्ञता, शरण्यता, कारुण्य, प्रशान्ति और वेदों के आचार तथा वेदों के वैकल्पिक विषयों में आत्मतुष्टि |

भारत एक धर्मप्राण देश है और यहाँ का जनमानस धर्म पर अवलम्बित है | जीवन के सभी छोटे बड़े कार्य यहाँ धर्म के आधार पर व्यवस्थित होते हैं | धर्म की परिभाषा करते हुए कहा गया है “धारयतीति धर्मः” अर्थात् समाज या व्यक्ति को धारण करने वाले तत्व को धर्म कहा जाता है | इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि “धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है | वास्तव में विश्व में विनाश की ओर जाने की प्रवृत्ति धर्मत्याग से ही आई है | प्राचीन समाज ने कहा “धर्मं चर” अर्थात् धर्म का आचरण करो, उसी से कल्याण होगा | आधुनिक समाज का नारा है “धर्म और ईश्वर की दासता से मुक्ति पाओ | यह दुर्बलता है | नियम बन्धन व्यर्थ हैं | मन स्वतन्त्र रहना चाहिये | मन की आज्ञा मानो |”

धर्म सदा एक ही है, अनेक नहीं हो सकता | अग्नि का धर्म उष्णता है, वह एक ही है, उसका अन्य कोई धर्म नहीं है | आज जो राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म, समाज धर्म, मानव धर्म आदि के नारे हैं वे सभी भ्रामक हैं | धर्म सौ दो सौ नहीं हो सकते | धर्म का वास्तविक स्वरूप क्या है ? दुःखहीन शाश्वत सुख पाने का भ्रान्तिहीन प्रयत्न ही धर्म है | धर्म का यही स्वरूप भारतीय जनमानस में प्रतिष्ठित है | यही प्रयत्न मानव को अन्तर्मुखी बनाता है | जो प्रयत्न बहिर्मुख करता है वही अधर्म है | अन्तर्मुखी प्रेरणा भारत के जन जन में सर्वत्र देखने को मिल सकती है | धनी-निर्धन, पढ़ा लिखा-अनपढ़, हर व्यक्ति यही वाक्य कहता मिलेगा “अरे यह धन और धरती यहीं रह जाएँगे, कोई छाती पर रखकर नहीं ले जाएगा |” इस प्रकार सिद्ध होता है कि भारत के जन मानस में धर्म त्याग भावना के रूप में प्रतिष्ठित है | यह बात दूसरी है कि उसके अनुसार आचरण मुखर नहीं है |

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेSर्जुन |

सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्त्विको मत: || – गीता 18/9

जो कर्म फलेच्छा तथा आसक्ति को छोड़कर यह कर्तव्य है ऐसा जानकार किया जाता है वह त्याग सात्त्विक त्याग है और वही धर्म की भावना का मूलाधार है…

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