Monthly Archives: September 2023

श्राद्ध पक्ष में पाँच ग्रास निकालने का महत्त्व

श्राद्ध पक्ष में पाँच ग्रास निकालने का महत्त्व

श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्रद्धापूर्वक किया जाए वह श्राद्ध है |

शुक्रवार 29 सितम्बर से सोलह दिनों के लिए दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व श्राद्ध पक्ष आरम्भ होने जा रहा है | वैदिक मान्यता के अनुसार वर्ष का पूरा एक पक्ष ही पितृगणों के लिये समर्पित कर दिया गया है | जिसमें विधि विधान पूर्वक श्राद्ध कर्म किया जाता है | शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध कर्म करने का अधिकारी कौन है, विधान क्या है आदि चर्चा में हम नहीं पड़ना चाहते, इस कार्य के लिये पण्डित पुरोहित हैं | उदाहरणस्वरूप श्राद्ध कर्म करने के लिए दिन में चार मुहूर्त श्रेयस्कर माने गए हैं – कुतुप मुहूर्त – जो प्रायः प्रातः 11:30 से 12:30 के मध्य होता है, अभिजित मुहूर्त – यह प्रतिदिन परिवर्तित होता रहता है – किन्तु प्रायः कुतुप काल के आस पास ही आता है और बुधवार को नहीं होता, रोहिणी मुहूर्त – नाम से ही स्पष्ट है – रोहिणी नक्षत्र का समय, और मध्याह्न काल – यदि प्रथम तीन मुहूर्त न मिलें तो मध्याह्न काल में श्राद्ध कर्म करना चाहिए | किन्तु हमारी स्वयं की मान्यता है कि अपनी सुविधानुसार जिस समय चाहे पितृगणों के लिए तर्पणादि कार्य किये जा सकते हैं – हमारे पूर्वज हमें कभी हानि तो नहीं ही पहुँचाएँगे अपितु हम पर सदा कृपादृष्टि ही बनाए रखेंगे – आवश्यकता है श्रद्धापूर्वक हृदय से उनका स्मरण करने की |

इसी प्रकार विद्वान् पण्डित लोगों का तो कहना है और शास्त्रों में भी लिखा हुआ है कि श्राद्ध कर्म पुत्र द्वारा किया जाना चाहिये | प्राचीन काल में पुत्र की कामना ही इसलिये की जाती थी कि अन्य अनेक बातों के साथ साथ वह श्राद्ध कर्म द्वारा माता पिता को मुक्ति प्रदान कराने वाला माना जाता था “पुमान् तारयतीति पुत्र:” | लेकिन जिन लोगों के पुत्र नहीं हैं उनकी क्या मुक्ति नहीं होगी, या उनके समस्त कर्म नहीं किये जाएँगे ? हमारे कोई भाई नहीं है, माँ का स्वर्गवास अब से ग्यारह वर्ष पूर्व जब हुआ तो पिताजी भी उस समय तक गोलोक सिधार चुके थे | हमने अपनी माँ को मुखाग्नि भी दी और अब उनका तथा अपने पिता का दोनों का ही श्राद्ध भी पूर्ण श्रद्धा के साथ हम ही करते हैं | तो इस बहस में हम नहीं पड़ना चाहते | हम तो बात कर रहे हैं इस श्राद्ध पर्व की मूलभूत भावना श्रद्धा की – जो भारतीय संस्कृति की नींव में है |

भारतीय संस्कृति अत्यन्त प्राचीन है तथा आचार मूलक है | किसी भी राष्ट्र की संस्कृति की पहचान वहाँ के लोगों के आचरण से होती है | और भारतीय संस्कृति की तो नींव ही सदाचरण, सद्विचार, योग व भक्तिपरक उपासना, पुनर्जन्म में विश्वास तथा देव और पितृ लोकों में आस्था आदि पर आधारित है जिसका अन्तिम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्ति अर्थात आत्म तत्व का ज्ञान | पितृगणों के प्रति श्राद्ध कर्म भी इसी प्रकार के सदाचरणों में से एक है | ब्रह्म पुराण में कहा गया है “देशे काले च पात्रे च श्राद्धया विधिना चयेत | पितृनुद्दश्य विप्रेभ्यो दत्रं श्राद्धमुद्राहृतम ||” – देश काल तथा पात्र के अनुसार श्रद्धा तथा विधि विधान पूर्वक पितरों को समर्पित करके दान देना श्राद्ध कहलाता है | स्कन्द पुराण के अनुसार देवता और पितृ तो इतने उदारमना होते हैं कि दूर बैठे हुए भी रस गन्ध मात्र से ही तृप्त हो जाते हैं | जिस प्रकार गौशाला में माँ से बिछड़ा बछड़ा किसी न किसी प्रकार अपनी माँ को ढूँढ़ ही लेता है उसी प्रकार मन्त्रों द्वारा आहूत द्रव्य को पितृगण ढूँढ ही लेते हैं | इसी प्रकार याज्ञवल्क्य स्मृति में लिखा है कि पितृगण श्राद्ध से तृप्त होकर आयु, सन्तान, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, राज्य एवं सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं “आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानी च, प्रयच्छन्ति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितां महा: |” (याज्ञ. स्मृति: 1/270)

वास्तव में श्राद्ध प्रतीक है पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का | हिन्दू मान्यता के अनुसार प्रत्येक शुभ कर्म के आरम्भ में माता पिता तथा पूर्वजों को प्रणाम करना चाहिये | यद्यपि अपने पूर्वजों को कोई विस्मृत नहीं कर सकता, किन्तु फिर भी दैनिक जीवन में अनेक समस्याओं और व्यस्तताओं के चलते इस कार्य में भूल हो सकती है | इसीलिये हमारे ऋषि मुनियों ने वर्ष में पूरा एक पक्ष ही इस निमित्त रखा हुआ है |

श्रद्धावान होना चारित्रिक उत्थान का, ज्ञान प्राप्ति का तथा एक सुदृढ़ नींव वाले पारिवारिक और सामाजिक ढाँचे का एक प्रमुख सोपान है | फिर पितृजनों के प्रति श्रद्धायुत होकर दान करने से तो निश्चित रूप से अपार शान्ति का अनुभव होता है तथा शास्त्रों की मान्यता के अनुसार लोक परलोक संवर जाता है | इसीलिए श्राद्धपक्ष का इतना महत्व हिन्दू मान्यता में है | भारतीय संस्कृति एवं समाज में अपने पूर्वजों और दिवंगत माता पिता का इस श्राद्ध पक्ष में श्रद्धा पूर्वक स्मरण करके श्रद्धापूर्वक दानादि के द्वारा उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते हैं | इस अवसर पर दिये गए पिण्डदान का भी अपना विशेष महत्व होता है | श्राद्ध कर्म में पके चावल, दूध और तिल के मिश्रण से पिण्ड बनाकर उसे दान करते हैं | पिण्ड का अर्थ है शरीर | यह एक पारम्परिक मान्यता है कि हर पीढ़ी में मनुष्य में अपने मातृकुल तथा पितृकुल के गुणसूत्र अर्थात वैज्ञानिक रूप से कहें तो जीन्स उपस्थित रहते हैं | इस प्रकार यह पिण्डदान का प्रतीकात्मक अनुष्ठान उनकी तृप्ति के लिये होता है जिन लोगों के गुणसूत्र श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में विद्यमान होते हैं |

पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा यानी 29 सितम्बर से आरम्भ हो रहा है | श्राद्ध कर्म का एक विशेष अंग है कि तर्पण आदि के पश्चात पाँच ग्रास निकाले जाते हैं जो गौ ग्रास कहलाते हैं और गौ, श्वान यानी कुत्ता, काक यानी कौआ, चींटी तथा देवताओं के लिए समर्पित किये जाते हैं | जिस भारतीय दर्शन में समस्त जड़ चेतन में ईश्वर के दर्शन किये जाते हों, जहाँ “अहं ब्रह्मास्मि तत्वमसि” अर्थात मैं भी ब्रह्म का स्वरूप हूँ और तुम भी वही हो के द्वारा समस्त जीवों तथा प्रकृति के प्रति अद्वैत की भावना रखी जाती हो वहाँ इस प्रकार से यदि पशु पक्षियों के लिए श्रद्धापूर्वक भोजन समर्पित किया जाए तो उसमें आश्चर्य की बात नहीं |

मान्यता तो यही है कि इन समस्त जीव जन्तुओं के रूप में हमारे दिवंगत पूर्वज हमारे पास आते हैं | लेकिन इन ग्रासों का वास्तव में बहुत बड़ा महत्त्व हिन्दू मान्यता में है | पञ्चतत्वों – जिनसे समस्त चराचर जगत का निर्माण हुआ है – की बात करें तो माना जाता है कि कौआ वायु तत्व का, कुत्ता जल तत्व का, चींटी अग्नि तत्व का, गाय पृथिवी तत्व का तथा समस्त देवी देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं | अतः इन पाँच ग्रासों के माध्यम से हम पञ्चतत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं |

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना जाता है | अथर्ववेद के अनुसार- धेनु सदानाम रईनाम अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है | वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है | वह जननी है | गौ की महिमा से भला कौन परिचित नहीं ? ऐसा भी माना जाता है कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं | पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं | सम्भवतः इसीलिए माना जाता है कि गौ को भोजन कराने से घर से सम्बन्धित कष्ट दूर होकर सुख समृद्धि में वृद्धि होगी | इसे गौ बलि के नाम से जाना जाता है | भोजन के पाँच ग्रासों में से प्रथम भाग गाय को दिया जाता है क्योंकि गरुड़ पुराण में गाय को वैतरिणी नदी से पार लगाने वाली कहा गया है | साथ ही गाय के शरीर में सभी देवी देवताओं का वास होने के कारण गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त हो जाते हैं |

श्वान भैरव महाराज का सेवक है | साथ ही यह भविष्य में होने वाली तथा सूक्ष्म जगत की घटनाओं और आत्माओं को देखने की भी क्षमता रखता है | पाँच ग्रासों में से दूसरा भाग श्वान यानी कुत्ते को दिया जाता है और श्वान बलि के नाम से जाना जाता है | श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते यमराज के पशु माने जाते हैं और ये ग्रास उनके निमित्त होता है |

 काक को अतिथि के आगमन का सूचक माना जाता है | कौए और कुत्ते को पितरों का आश्रय स्थल भी माना जाता है | एक बात और सभी ने अनुभव की होगी कि श्राद्धपक्ष आरम्भ होते ही न जाने कहाँ से कौओं का जैसे रेला सा छतों पर आकर बैठ जाता है | तीसरा ग्रास कौए के लिए होता है | कौए को यमराज का प्रतीक माना जाता है | इसीलिए माना जाता है कि कौए को भोजन कराने से यमराज तथा पितृगण सभी प्रसन्न हो जाते हैं | इसीलिए तृतीय ग्रास कौए को दिया जाता है |

कुत्ते, कौए और चींटियों के साथ बहुत से शकुन और अपशकुन भी जुड़े हुए हैं | लेकिन उनकी बात करना यहाँ अप्रासंगिक तथा अन्धविश्वासों को बढ़ावा देने जैसा होगा | चींटी की बात करें तो यह बहुत ही मेहनती और एकता से रहने वाली जीव होती है | सामूहिक प्राणी होने के कारण चींटी सभी कार्यों को मिल बाँटकर करती है | चतुर्थ ग्रास होता है चींटियों आदि के लिए जिसे पिपीलिकादि बलि कहा जाता है और चींटियों के बिल के पास रखा जाता है | माना जाता है कि इस वर्ग के जीव तृप्त हो जाएँगे तो पितृगण भी तृप्त हो जाएँगे |

और अन्त में देवों का ग्रास | पाँच ग्रासों में से अन्तिम ग्रास देवताओं के निमित्त अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है | गाय के गोबर के उपलों से अग्नि प्रज्वलित करके उसमें घृत की आहुति के साथ पाँच ग्रासों की भी आहुति दी जाती है |

इस प्रकार गौ सहित समस्त जीव जन्तुओं तथा देवताओं के तृप्त हो जाने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है | कितनी उदात्त भावना है | हमारे पूर्वज जानते थे कि जो आत्माएँ दिवंगत हैं उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए जो षोडश दिवसीय पितृपक्ष का निर्धारण किया गया है उसमें भोजन ग्रहण करने के लिए हमारे दिवंगत पूर्वज तो नहीं आएँगे | तो क्यों न उनके स्मरण में प्रकृति के समस्त जीव जन्तुओं को भोजन कराया जाए ताकि ब्रह्मलीन हमारे पूर्वजों की आत्माएँ तृप्त हो जाएँ | साथ ही, जिन जीव जन्तुओं को व्यक्ति श्राद्धकर्म में श्रद्धापूर्वक भोजन कराएगा उनके प्रति कभी अमानवीय आचरण करने का विचार भी उसके मन में नहीं आने पाएगा | अर्थात एक प्रकार से समस्त जीवों की सुरक्षा का संकल्प भी इन पाँच ग्रासों के माध्यम से लिया जाता था | और केवल श्राद्ध पक्ष में ही नहीं, बहुत से परिवारों में तो नित्य कर्म के रूप में इस प्रकार से पाँच ग्रास निकाल कर इन जीवों को अर्पित किये जाते थे | कुछ परिवारों में आज भी यह प्रथा जीवित है |

हमारे विचार से प्रकृति के जीव जन्तुओं को भोजन करने के साथ ही यदि ब्राह्मणों के साथ साथ ऐसे व्यक्तियों को भी भोजन कराया जाए जिनके पास वास्तव में पेट भरने के लिए कुछ भी नहीं है तो हमारे पूर्वजों को और अधिक तृप्ति का अनुभव होगा… तो क्यों न इस पितृपक्ष में प्रकृति के समस्त जीव जन्तुओं के प्रति सम्मान-करुणा-दया का भाव रखते हुए हर दीन हीन की सेवा का संकल्प हम सभी लें…

वंशी की मधुर ध्वनि

वंशी की वह मधुर ध्वनि… जी हाँ, यदि हम अपने चारों ओर की ध्वनियों से – चारों ओर के कोलाहल से मुक्त करके मौन का साधन करते हुए अपने भीतर झाँकने का प्रयास करें तो कान्हा की वह लौकिक दिव्य ध्वनि हमारे मन में गूँज सकती है… ऐसी कुछ उलझी सुलझी भावनाओं के साथ आज स्मार्तों और कल वैष्णवों की श्री कृष्ण जयन्ती की सभी को अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… वो युग पुरुष भगवान श्री कृष्ण जो केवल बृज धाम या मथुरा नगरी तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि समूचा विश्व जिनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेता है… कात्यायनी…

कृष्ण कथा

कृष्ण कथा

थी रात घनी कारी अँधियारी, मेघ झूम कर बरस रहे थे ।
जल थल और आकाश मिलाने हेतु ज़ोर से गरज रहे थे ||
यमुना भी थी चढ़ी हुई काँधे तक, मेघों का गर्जन था ।
हरेक भवन में व्याकुलता के दानव का ही बस नर्तन था ||

कारागृह के दरवाज़े पर कुछ प्रहरी पहरा देते थे ।
भीतर प्रसव वेदना से व्याकुल नारी के स्वर उठते थे ।।
तभी ज़ोर की बिजली कड़की, नेत्र सभी के बन्द हो गए ।
मूर्च्छित होकर सारे प्रहरी धरती पर अवलुंठित हो गए ||

प्रणव समक्ष खड़े थे, देखा देवसुता और वासुदेव ने ।
मनमोहक मुस्कान लिए वे जागो माँ ये पुकार रहे थे ||
तभी मधुर शिशु क्रन्दन ने कानों में अमृत घोल दिया था ।
श्यामवर्ण मोहक बालक ने मात पिता को मुग्ध किया था ||

खुलीं सकल बेड़ियाँ पिता की, सारे प्रहरी सोए पड़े थे ।
रखा सूप में शिशु को, पत्नी से आज्ञा ले निकल पड़े थे ||
चरण पखारे हरि के यमुना, शान्त भाव से नीचे आतीं ।
सारी जल की निधियाँ दर्शन के हित हरि के दौड़ी आतीं ||

निकट लिटा जसुदा के कान्हा को, कन्या को गोद उठाया ।
कारागृह में पहुँच योगमाया ने क्रन्दन तीव्र मचाया ||
जागे प्रहरी सभी तो देखा, कोमल शिशु धरती पर पाया ।
तुरत संदेसा सुनकर मामा निज भवनों से भागा आया ||

रोका बहुत देवकी और वसुदेव ने, लेकिन कंस न माना ।
दिया धरा पर पटक बालिका को, एक पल भी शोक न माना ||
“तेरा मोक्ष कराने के हित जन्म हो चुका है भगवन का” ।
देकर यह संदेश योगमाया ने भव सागर गुँजाया ||

कारागृह में जन्म लिया, वसुदेव देवकी सुत थे कान्हा ।
पर आँचल था भरा यशोदा का, जिस गोदी खेले कान्हा ||
कालसर्प का योग बड़ा भारी कुण्डली में पड़ा हुआ था ।
कितने रोगों दुर्घटनाओं के कष्टों से भरा हुआ था ||

नष्ट किया उन सबही को, और अमित पराक्रम दिखलाया था ।
माखन की चोरी करके सबके ही मन को मोह लिया था ||
बच्चों का पालन कैसे हो, मात पिता को सिखलाया था ।
कितनी नैतिक शिक्षाओं को निज लीला से सिखलाया था ||

राजनीति और कूटनीति का मर्म तुम्हीं ने समझाया था ।
साम दाम और दण्ड भेद सब उचित युद्ध में, सिखलाया था ||
प्रेम और सौहार्द रहे, यह मर्म तुम्हीं ने समझाया था ।
कर्म करो निर्लिप्त भाव से, दर्शन यह भी दिखलाया था ||

जो सम्मान प्रकृति को दोगे, वह भी बिखराएगी ममता ।
इसी हेतु निज अँगुली पर गोवर्धन को भी उठा लिया था ||
सारी गउएँ कामधेनु हैं, अमृतपान कराएँगी ही
इसीलिए गउओं की रक्षा का भी प्रण तुमने धारा था ||

सूझ बूझ से कर्म करो, निज भाग्य विधाता बन जाओगे ।
कितने ही रण छोड़ो, करो प्रयास, लक्ष्य को पा जाओगे ||
दया प्रेम करुणा के सागर, तुमको वसुधा शीश नवाती ।
और चरण पखारे सागर, नदियाँ कण्ठ हार बन जातीं ||

आकाश तुम्हारा नवल क्षेत्र, द्युलोक तुम्हारा मस्तक है ।
यह धरा सकल है चरण कमल, नासिका कुमार अश्विनी हैं ||
तुम सभी सूर्य चन्दा तारे ग्रह नक्षत्रों के स्वामी हो ।
ये सभी तुम्हारी अनगिन देह यष्टियों के ही रूप तो हैं ||

तुम ब्रह्मरूप में प्रकट हुए, विस्तार सृष्टि का तुमसे ही ।
तुम सकल कलायुत पूर्ण पुरुष, है कठिन बहुत तुम सा बनना ||
पर सद्भावों से युत होकर मानव माधव बन जाता है ।
और अन्त समय में कृष्णरूप हो ब्रह्मलीन हो जाता है ||
——कात्यायनी

श्री कृष्ण जन्म महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं