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बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ

बुद्ध पूर्णिमा

“स्त्री तब तक “चरित्रहीन” नहीं हो सकती, जब तक पुरुष “चरित्रहीन” न हो | आज हम जो कुछ भी हैं वो हमारी आज तक की सोच का परिणाम है | इसलिए अपनी सोच ऐसी बनानी चाहिए ताकि क्रोध न आए | क्योंकि हमें अपने क्रोध के लिए दण्ड नहीं मिलता, अपितु क्रोध के कारण दण्ड मिलता है | क्रोध एक ऐसा जलता हुआ कोयला है जो दूसरों पर फेंकेंगे तो पहले हमारा हाथ ही जलाएगा | यही कारण है कि हम कितने भी युद्धों में विजय प्राप्त कर लें, जब तक हम स्वयं को वश में नहीं कर सकते तब तक हम विजयी नहीं कहला सकते | इसलिए सर्वप्रथम तो अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए | भले ही कम बोलें, लेकिन ऐसी वाणी बोलें जिससे प्रेम और शान्ति का सुगन्धित समीर प्रवाहित हो | हम कितनी भी आध्यात्म की बातें पढ़ लें या उन पर चर्चा कर लें, कितने भी मन्त्रों का जाप कर लें, लेकिन जब तक हम उनमें निहित गूढ़ भावनाओं को अपने जीवन का अंग नहीं बनाएँगे तब तक सब व्यर्थ है | इस सबके साथ ही हमें अपने अतीत के स्मरण और भविष्य की चिन्ताओं को भुलाकर अपना वर्तमान सुखद बनाने का प्रयास करना चाहिए | क्योंकि संसार दुखों का घर है, दुख का कारण वासनाएँ हैं, वासनाओं को मारने से दुख दूर होते हैं, वासनाओं को मारने के लिए मानव को अष्टमार्ग अपनाना चाहिये, अष्टमार्ग अर्थात – शुद्ध ज्ञान, शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि”…

इस प्रकार की जीवनोपयोगी और व्यावहारिक शिक्षाएँ देने वाले भगवान बुद्ध का आज वैशाख पूर्णिमा को जन्मदिवस (जो सिद्धार्थ गौतम के रूप में था) भी है, बुद्धत्व प्राप्ति (जिस दिन दीर्घ तपश्चर्या के बाद सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बने) का दिन भी है और महानिर्वाण (मोक्ष) दिवस भी है | यों कल प्रातः सूर्योदय के बाद 6:38 पर पूर्णिमा तिथि का आगमन हो चुका है, इसलिए उपवास की पूर्णिमा कल थी, किन्तु उदया तिथि होने के कारण बुद्ध पूर्णिमा का पर्व आज मनाया जा रहा है | सर्वप्रथम बुद्ध पूर्णिमा की सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ | बुद्ध न केवल बौद्ध सम्प्रदाय के ही प्रवर्तक हैं अपितु भगवान विष्णु के नवम अवतार के रूप में भी भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना की जाती है |

अब हम बुद्ध के उपरोक्त कथन पर बात करते हैं | व्यक्ति के आत्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के लिए बुद्ध ने शुद्ध ज्ञान, शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि के अष्टमार्ग के साथ साथ पाँच बातें और कही हैं कि मनसा वाचा कर्मणा अहिंसा का पालन करना चाहिए, जब तक कोई अपनी वस्तु प्रेम और सम्मान के साथ हमें न दे तब तक उससे पूछे बिना वह वस्तु नहीं लेनी चाहिए, किसी भी प्रकार के दुराचार अथवा व्यभिचार से बचना चाहिए, असत्य सम्भाषण नहीं करना चाहिए और मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए |

इन उपदेशों के पीछे भावना यही थी कि व्यक्ति को एक ऐसा मार्ग दिखा सकें जिस पर चलकर वह सांसारिक कर्तव्य करते हुए आत्मोत्थान के मार्ग पर अग्रसर होकर मोक्ष अर्थात पूर्ण ज्ञान की स्थिति को प्राप्त हो जाए | व्यक्ति को स्वयं ही उसके देश-काल-परिस्थिति का पूर्ण सत्यता और ईमानदारी से आकलन करके यह निश्चित करना होगा कि क्या उसके लिए उचित है और क्या अनुचित | किन्तु इतना अवश्य है कि बुद्ध के उपदेशों की आत्मा को यदि मानवमात्र ने आत्मसात कर लिया तो हर प्रकार के छल, कपट, युद्ध आदि से संसार को मुक्ति प्राप्त हो सकेगी और शान्त तथा आनन्दित हुआ मानव अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा – अध्यात्म मार्ग अर्थात स्वयं अपने भीतर झाँकने का मार्ग – स्वयं अपनी आत्मा से साक्षात्कार करने का मार्ग | और समस्त भारतीय दर्शनों की मूलभूत भावना यही है |

उदाहरण के लिए बुद्ध ने कायिक, वाचिक, मानसिक किसी भी प्रकार की हिंसा को अनुचित माना है | लेकिन जो लोग सेना में हैं – देश की सुरक्षा के लिए जो कृतसंकल्प हैं – आततायियों को नष्ट करने का उत्तरदायित्व जिनके कन्धों पर है – उनके लिए उस प्रकार की हिंसा ही उचित और कर्तव्य कर्म है, यदि वे पूर्ण रूप से अहिंसा का मार्ग अपना लेंगे तो न केवल वे कायर कहलाएँगे, बल्कि देश की सुरक्षा भी नहीं कर पाएँगे |

बुद्ध ने दुराचार और व्यभिचार से बचने की बात कही | आज जिस प्रकार से महिलाओं – यहाँ तक कि छोटी बच्चियों – के साथ दुराचार और व्यभिचार की दिल दहला देने वाली घटनाएँ सामने आ रही हैं – यदि अपने घरों में ही हम परिवार का केन्द्र बिन्दु – समाज की आधी आबादी – नारी शक्ति का सम्मान करना सीख जाएँ तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है | यहाँ बुद्ध की एक कथा का उदाहरण प्रस्तुत है कि एक बार भ्रमण करते हुए बुद्ध एक गाँव में पहुँचे तो वहाँ एक स्त्री उनसे मिलने के लिए आई और बोली “आप देखने में तो राजकुमार लगते हैं लेकिन वस्त्र आपने सन्यासियों के पहने हैं | इसका कारण ?”

बुद्ध ने उत्तर दिया “हमारा यह युवा और आकर्षक शरीर क्यों बीमार और वृद्ध होकर अन्त में काल के गाल में समा जाता है इसी प्रश्न का उत्तर ढूँढने के लिए मैंने सन्यास लिया है…” स्त्री उनकी बातों से प्रभावित हुई और उन्हें अपने घर भोजन के लिए निमन्त्रित किया | ग्रामवासियों को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने बुद्ध से कहा कि वे उस स्त्री के घर भोजन के लिए न जाएँ क्योंकि वह चरित्रहीन है | बुद्ध ने जब प्रमाण माँगा तो गाँव के मुखिया ने कहा “मैं शपथ लेकर कहता हूँ यह स्त्री चरित्रहीन है…” बुद्ध ने मुखिया का एक हाथ पकड़ लिया और उसे ताली बजाने को कहा | मुखिया ने कहा “मैं एक हाथ से ताली कैसे बजा सकता हूँ ?” तब बुद्ध ने कहा “अगर तुम एक हाथ से ताली नहीं बजा सकते तो फिर यह स्त्री अकेली कैसे चरित्रहीन हो सकती है | किसी भी स्त्री को चरित्रहीन बनाने के लिए पुरुष उत्तरदायी है | यदि पुरुष चरित्रवान होगा तो भला स्त्री कैसे चरित्रहीन हो सकती है ?” यही बात यदि हम अपने घर के बच्चों को संस्कार के रूप में सिखाना आरम्भ कर दें तो महिलाओं के प्रति अत्याचार जैसी भयावह स्थिति से बहुत सीमा तक मुक्ति प्राप्त हो सकती है |

बुद्ध ने मदाक पदार्थों से बचने की बात कही – तो क्या केवल नशीली वस्तुओं का सेवन ही मादक पदार्थों का सेवन है ? दूसरों की चुगली करना, आत्मतुष्टि के लिए दूसरों के कार्यों में विघ्न डालना इत्यादि ऐसी अनेकों बातें हैं कि जिनकी लत पड़ जाए तो कठिनाई से छूटती है – इस प्रकार के नशों का भी त्याग करने के लिए बुद्ध प्रेरणा देते हैं | हम सभी दोनों “कल” की चिन्ता करते रहते हैं और “आज” को लगभग भुला ही देते हैं | बीते “कल” का कुछ किया नहीं जा सकता, अतः हमें उसे भुलाकर “आज” पर गर्व करना सीखना होगा… विश्वास कीजिए, आने वाला “कल” स्वतः ही अनुकूल हो जाएगा…

तो, देश काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति को अपने लिए उचित-अनुचित का निर्धारण करना चाहिए | हाँ, इतना प्रयास अवश्य करना चाहिए कि हमारे कर्म ऐसे हों कि जिन्हें करने के बाद हमारे मन में किसी प्रकार के अपराध बोध अथवा पश्चात्ताप की भावना न आने पाए | क्योंकि यदि हमारे मन में किसी बात के लिए अपराध बोध आ गया या किसी प्रकार के पश्चात्ताप की भावना आ गई तो हमें स्वयं से ही घृणा होने लगेगी और तब हम किस प्रकार सुखी रह सकते हैं ? स्वयं को दुखी करना भी एक प्रकार की हिंसा ही तो है | जो व्यक्ति स्वयं ही दुखी होगा वह दूसरे लोगों को सुख किस प्रकार पहुँचा सकता है ? जबकि बुद्ध के इन उपदेशों का मूलभूत उद्देश्य ही है मानव मात्र की प्रसन्नता – मानव मात्र का सुख…

अस्तु, बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धम्मम् शरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि ।।

बुद्ध अर्थात् अपनी चैतन्य आत्मा की साक्षी में रहते हुए, धर्म अर्थात अपने यथोचित कर्तव्यों का पालन करते हुए, संघ अर्थात समुदाय – समाज – देश – विश्व – समस्त ब्रह्माण्ड – इस समस्त चराचर जगत के प्रति उत्तरदायी रहकर सभी के हितों की चिन्ता करते हुए – सभी के प्रति समभाव रखते हुए – करुणा का भाव रखते हुए और बुद्ध के दिखाए मार्ग पर चलते हुए हम सभी सुखी रहें, शान्तचित्त रहें, सबके प्रति हमारा प्रेमभाव बना रहे, इसी भावना के साथ सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ…

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं

कोरोना की विकरालता एक ओर कुछ कम होने लगी है – जैसा समाचारों से ज्ञात हो रहा है, तो वहीं दूसरी ओर समाचारों से ही ये भी ज्ञात हुआ कि काली और सफ़ेद फंगस के मामले बढ़ते जा रहे हैं… और अब तो हमारे देश का भविष्य – हमारे बच्चे – इससे संक्रमित होते जा रहे हैं… सच में स्थिति तो बहुत चिन्ता जनक है, क्योंकि बच्चों को हल्का से बुखार भी हो जाए तो उसी में माता पिता की जान निकली जाती है, फिर ये तो ऐसी महामारी है कि जिसके विषय में सोचते हुए भी डर लगता है… इस स्थिति में दवा, साफ़ सफाई, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और इम्यूनिटी बढ़ाने के उपायों के साथ ही ईश्वर से करुण पुकार भी करने की आवश्यकता है कि इस स्थिति से हमें शीघ्र ही मुक्ति प्राप्त हो…

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं, प्रभो गिरते गिरते सम्हलते सम्हलते |

दयानाथ अब तो हमें आसरा दो, बड़ी उम्र गुजरी भटकते भटकते ||

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं…

रहे बालपन में तो हम बेख़बर ही, जवानी भी बस हमने यूँ ही गँवा दी |

बुढ़ापे में अब हो गए हैं जो बेबस, तुम्हें टेरते हैं सिसकते सिसकते ||

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं…

सुना है कि दीनों के रक्षक रहे तुम, सदा ही किया तुमने पतितों को पावन |

तो अब हे प्रभो देर क्यों हो रही है, क़दम उठ रहे क्यों झिझकते झिझकते ||

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं…

हैं पापी अगर हम, तो फिर ये भी सच है, कि हैं आप भी पापियों के उधारक |

तो भवसिन्धु में किसलिए अपना बेड़ा, पड़ा रह गया यों खिसकते खिसकते ||

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं…

तुम्हीं सोच लो कौन बदनाम होगा, हमारा जो उद्धार तुम कर न पाए |

तुम्हीं से कहेगा ये सारा ज़माना, इन्हें तज दिया क्यों तरसते तरसते ||

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं…

यूँ ही धूप छाँ रात दिन जा रहे हैं, यूँ ही चाँद सूरज भी मुसका रहे हैं |

न जाने दयानाथ कब आ रहे हैं, नज़र ठक गई रास्ता तकते तकते ||

तुम्हारे चरण की शरण आ गए हैं…

है कौन ये अदृश्य

मित्रों, रात कितनी ही बड़ी क्यों न हो, हर रात का सवेरा होता है… इस कोरोना की भयानक अँधियारी रात भी बीतेगी और सुख का उजियाला हर ओर फैलेगा… किंचित लालिमायुत उषा को आगे करके अरुण रथ पर सवार भोर का सूरज आशा का संदेसा लेकर आएगा… यदि हम सावधान रहकर करते रहे पालन कोरोना के नियमों का… और एक बात, वैक्सीन लेना न भूलें… क्योंकि वैक्सीन बहुत बड़ा अस्त्र है इस युद्ध में, तो वैक्सीन लेना न भूलें… आप कह सकते हैं कि वैक्सीन के बाद भी कुछ लोग क्यों हारे जा रहे हैं इस बीमारी से… तो इसका कारण तो हमारे वैज्ञानिक खोजेंगे… क्योंकि वैक्सीन लेकर भी यदि तनिक भी लापरवाह हुए तो वायरस से संक्रमित हो सकते हैं… लेकिन उसका इतना विकराल रूप नहीं होगा ऐसा डॉक्टर्स कहते हैं… तो, सभी स्वस्थ रहें, रोगमुक्त रहें, यही कामना है… कात्यायनी…

मैं तो हूँ शाश्वत सत्य सदा

कोरोना की विकरालता तो कुछ कम हुई है, जिसे देखकर अभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत शीघ्र इस कष्ट से संसार को मुक्ति प्राप्त होगी… किन्तु अभी बहुत लम्बा मार्ग तय करना है जीवन को पुनः सामान्य स्थिति में लाने के लिए… जो घाव इस बीमारी ने दिए उन्हें भरने में वास्तव में बहुत समय लगेगा… किन्तु साथ ही हम एक बात भी सोचते हैं कि आत्मा तो सदा आनन्द में मग्न रहती है… शाश्वत है… सत्य है… इसलिए वह शीघ्र ही सामान्य स्थिति में आ जाएगी… क्योंकि मनुष्य शरीर नहीं है… आत्मा है… जिसकी कोई सीमा नहीं बाँधी जा सकती… जिसका कभी नाश नहीं होता… जो होती है पूर्णकाम… तो इसी प्रकार के उलझे सुलझे से भावों को लिए हुए प्रस्तुत है हमारी रचना “मैं तो हूँ शाश्वत सत्य सदा…” कात्यायनी…

है कौन ये अदृश्य

नमस्कार मित्रों… आज सभी कोरोना के कारण डरे हुए हैं… एक ऐसा वायरस जिसके रूप में एक अदृश्य शक्ति ने हर किसी को घरों में कैद किया हुआ है… किन्तु यह भी सत्य है कि ऐसी कोई रात नहीं जिसकी सुबह न हो… इसीलिए है विश्वास कि शीघ्र ही सुख का सवेरा होगा और कष्ट की इस बदली को चीरता सूर्य चारों ओर अपनी मुस्कराहट बिखराएगा…

है कौन ये अदृश्य कौन है छिपा हुआ, आज सारा विश्व जिससे है डरा हुआ |
किस दिशा से और कौन राह से चला, आज सारा विश्व जिससे है डरा हुआ ||
धर्म जात पात कुछ भी मानता नहीं, वृद्ध है युवा है बाल है पता नहीं |
हम हैं मरते जात पात धर्म के लिए, कर रहा तभी ये आज अट्टहास है ||
आओ मिलके विश्व को ऐसा बनाएँ हम, ऊँच नीच का जहाँ न कोई भेद हो |
ये कोरोना है, ये कुछ भी जानता नहीं, आज यहाँ, कल है वहाँ, परसों हो कहाँ ||

महाशक्तियाँ भी आज तोड़ती हैं दम, थम रही है आज लय साँसों की हरेक पल |

चरमरा उठी हैं व्यवस्थाएं अब सभी, प्रगति पथ पे आज देखो शाम है ढली ||

अन्धकार की निशा है सामने खड़ी, मन घिरा है आज सन्देहों के जाल से |

और मनुजता भी आज सोच में पड़ी, होगा दूर कैसे ये अवरोध, सोचती ||

त्रासदी है इस सदी की ये बहुत बड़ी, है शत्रु ये परोक्ष, कभी दीखता नहीं |

है मगर संकल्प मन में, होगा इसका अन्त, दूर रहेंगे जो एक दूसरे से हम ||

है आज बना मास्क कवच, छोड़ना नहीं, और बढ़के हाथ भी किसी का थामना नहीं |

पर मन से ना हों दूर, ऐसी कामना करें, तो सुखभरी उस भोर को देखेंगे हम सभी ||

है महासंग्राम का सैनिक हरेक जन, हो रहा संघर्ष आज है हरेक पल |

है दुखों की रात छोटी, सुख के दिन बड़े, बीत जाएगी ये रात, आस जो रहे ||

जी बिल्कुल, रात कितनी ही बड़ी क्यों न हो, हर रात का सवेरा होता है… इस कोरोना की भयानक अँधियारी रात भी बीतेगी और सुख का उजियाला हर ओर फैलेगा… किंचित लालिमायुत उषा को आगे करके अरुण रथ पर सवार भोर का सूरज आशा का संदेसा लेकर आएगा… किन्तु तभी, जब हम रहे सावधान… जब हम करते रहे पालन कोरोना के नियमों का… लगाते रहे मास्क… बनाकर रखी दो गज की दूरी… और रखा ध्यान साफ़ सफाई का… सभी स्वस्थ रहें, रोगमुक्त रहें, यही कामना है… कात्यायनी…