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द्वितीया ब्रह्मचारिणी

द्वितीया ब्रह्मचारिणी

नवदुर्गा – द्वितीय नवरात्र – देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना

चैत्र शुक्ल द्वितीया – दूसरा नवरात्र – माँ भगवती के दूसरे रूप की उपासना का दिन | देवी का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है – ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी – अर्थात् ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिसका स्वभाव हो वह ब्रह्मचारिणी | यह देवी समस्त प्राणियों में विद्या के रूप में स्थित है…

या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |

इस रूप में भी देवी के दो हाथ हैं और एक हाथ में जपमाला तथा दूसरे में कमण्डल दिखाई देता है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, ब्रह्मचारिणी का रूप है इसलिये निश्चित रूप से अत्यन्त शान्त और पवित्र स्वरूप है तथा ध्यान में मग्न है | यह रूप देवी के पूर्व जन्मों में सती और पार्वती के रूप में शिव को प्राप्त करने के लिये की गई तपस्या को भी दर्शाता है | पार्वती के रूप में शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए तपस्या करते समय ऐसा समय भी आया जब उन्होंने समस्त प्रकार के भोज्य पदार्थों के साथ ही बिल्व पत्रों तक का भी सेवन बन्द कर दिया और तब उन्हें अपर्णा कहा जाने लगा | इतनी कठोर तपश्चर्या के कारण देवी के इस रूप को तपश्चारिणी भी कहा जाता है…

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलौ, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा

जो लोग भगवती के नौ रूपों को नवग्रह से सम्बद्ध करते हैं उनकी मान्यता है कि यह रूप मंगल का प्रतिनिधित्व करता है तथा मंगल ग्रह की शान्ति के लिए माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करनी चाहिए | किसी व्यक्ति की कुण्डली में प्रथम और अष्टम भाव से सम्बन्धित कोई समस्या हो तो उसके समाधान के लिए भी इनकी उपासना का विधान है | जो लोग ध्यान का अभ्यास करते हैं उनके लिए भी इस रूप की उपासना अत्यन्त फलदायक मानी जाती है | ऐसा भी माना जाता है कि अगर आप प्रतियोगिता तथा परीक्षा में सफलता चाहते हैं –  विशेष रूप से छात्रों को – माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना अवश्य करनी चाहिये । इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है और प्रतियोगिता आदि में सफलता प्राप्त होती है | इसके लिए निम्न मन्त्र के जाप का विधान है:

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदास्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु |

त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ||

इसके अतिरिक्त ऐं ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः” माँ ब्रह्मचारिणी के इस बीज मन्त्र के साथ भी देवी की उपासना की जा सकती है | कुछ स्थानों पर इस दिन तारा देवी और चामुण्डा देवी की उपासना भी की जाती है |

माँ भगवती का ब्रह्मचारिणी रूप हम सबकी रक्षा करते हुए सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण करे और सबके ज्ञान विज्ञान में वृद्धि करे…

ध्यान

वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |

जपमालाकमण्डलुधरां ब्रह्मचारिणीं शुभाम् ||
गौरवर्णां स्वाधिष्ठानास्थितां द्वितीय दुर्गां त्रिनेत्राम् |

धवलपरिधानां ब्रह्मरूपां पुष्पालंकारभूषिताम् ||
पद्मवदनां पल्लवाराधरां कातंकपोलां पीनपयोधराम् |

कमनीयां लावण्यां स्मेरमुखीं निम्ननाभिं नितम्बिनीम् ||

स्तोत्र

तपश्चारिणीं त्वां हि तापत्रयनिवारिणीम् |

ब्रह्मरूपधरां ब्रह्मचारिणीं प्रणमाम्यहम ||
नवचक्रभेदिनीं त्वां नवैश्वर्यप्रदायनीम् |

धनदां सुखदां ब्रह्मचारिणीं प्रणमाम्यहम् ||
शंकरस्य प्रिया त्वं हि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी |

शान्तिदामानन्दां ब्रह्मचारिणीं प्रणमाम्यहम् ||

कवच

त्रिपुरा हृदये पातु ललाटे शिवभामिनी |

अपर्णा मे सदा पातु नेत्रेSधरे कपोलके ||

पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे महेश्वरी |

षोडशी मे सदा पातु नाभौ गुदं च पादयोः |
अंगं च सततं पातु प्रत्यंगं ब्रह्मचारिणी ||

https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/09/29/dwitiya-brahmacharini/