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सखि और बहन तुम्हारी
रामायण का एक महत्त्वपूर्ण पात्र है मन्थरा… यदि वह न होती तो सम्भवतः रामायण की रचना ही न होती… किन्तु मन्थरा क्या वास्तव में ऐसी ही थी…? बहुत सी कथाएँ… बहुत सी किम्वदन्तियाँ उसके विषय में प्रचलित हैं… उन्हीं को आधार बनाकर रची गई ये रचना है… जिसका शीर्षक है… सखी और बहिन तुम्हारी… कात्यायनी…
वन में अपनी कुटिया में अपराध बोध से दबी वह अभागिन
बैठी थी एकान्त में / खोई हुई अतीत की स्मृतियों में…
छल किया था पापात्मा विष्णु ने / साथ दुन्दुभी गान्धर्वी के
करवाया था गदा का प्रहार इन्द्र से पीठ पर उसकी…
किन्तु छल कपट तो स्वभाव है देवताओं का
पहले वध किया भृगुपत्नी का / छल से
छला वृन्दा को भी / और पिता को भी प्रहलाद के…
लेकिन कैसे भूल जाती मैं अपमान अपना…?
इसीलिए जन्म लिया मैंने रूप में बहन के तुम्हारी
जो थी नितान्त सुन्दरी कोमलांगी राजकुमारी रेखा / कहलाती थी विशालाक्षी भी
बुद्धिमती इतनी / कर देती थी पराजित शास्त्रार्थ में / उद्भट विद्वानों को भी
जीते थे कितने ही युद्ध भी / साथ मिलकर तुम्हारे और पिता के…
किन्तु हाय दुर्भाग्य / घिर कर अनेक व्याधियों से
खो बैठी थी मनोहारी रूप अपना
हो गया था शरीर तिरछा / झुक गया था तीन तीन जगहों से यौवन में ही…
गति हो गई थी मन्थर / इसीलिए कहलाई मैं मन्थरा
बनी पात्र उपहास का / होता था व्यथित मन मेरा…
नहीं हो सका ब्याह मेरा / इसीलिए तो पाला था तुम्हें समान निज पुत्री के…
बहुत प्रसन्न थी उस दिन मैं / नहीं पड़ते थे पाँव धरती पर मेरे
जब किया था हल्दी चन्दन का लेप शरीर पर बिटिया तुम्हारे
अंगराग लगाकर किया था आभूषित पुष्पों से तुम्हें
कि अन्य पत्नियों को अपनी / विस्मृत कर दें पति तुम्हारे…
दिया प्रतिदान प्रेम का मेरे / तुमने भी
ले आईं साथ मुझे ससुराल अपनी / बनाकर धाय अपनी…
स्वागत हुआ था भव्य तुम्हारा भवन में महाराज के
प्रेयसि बनी तुम महाराज की / किन्तु संगिनी थीं दुःख सुख की कौशल्या ही…
होता था व्यथित हृदय मेरा / कब ले पाएगी स्थान कौशल्या का पुत्री मेरी…?
पुरुष का क्या / ले आएँगे दूसरी रानी भी / जब भर जाएगा मन तुमसे…
रुदन करता था हृदय मेरा / जब कहते थे लोग
नहीं दे सकी कैकेयी भी उत्तराधिकारी महाराज को / अन्य रानियों की ही तरह…
समय बदला / तीनों रानियों ने दिया था जन्म पुत्रों को
किन्तु घोषणा की महाराज ने युवराज के रूप में कौशल्यापुत्र की ही…
करने लगे थे नर्तन असंख्य नाग / छाती पर मेरी…
किन्तु प्रसन्न थीं तुम इस घोषणा से
क्योंकि था स्नेह तुम्हें राम पर / पुत्र भरत से भी अधिक…
समझाती थी मैं तुम्हें / भरत का है अधिकार प्रथम / नेह पर तुम्हारे
किन्तु क्या दोष दूँ तुम्हें भी / जब लगा लेती थी मैं ही स्वयं / हृदय से अपने
भरत से भी अधिक मोहक छवि वाले पुत्र राम को…
दुःख हुआ था मुझे उस दिन / जब विश्वामित्र ने भी चुना राम लक्ष्मण को ही
क्या मेरा भरत कम था योग्यता में किसी से…?
किन्तु क्यों देतीं कान तुम बात पर मेरी / मात्र धाय ही तो थी मैं तुम्हारी
निर्वाह कर रही थी अपने उसी धर्म का / साथ पूर्ण निष्ठा के
तुम्हारे अतिरिक्त और था ही क्या संसार में मेरे…
हाहाकार मच गया था हृदय में मेरे
जब महाराज ने की थी घोषणा राज्याभिषेक की राम के / अनुपस्थिति में भरत की
फिर भी रखा था संयम मैंने भावनाओं पर अपनी / मर्यादा जानकार अपनी…
किन्तु तभी पुनः छला मुझे देवों ने ही…?
भेज दिया सरस्वती को पास मेरे / दिलवाओ राम को वनवास
राजा बन गए / तो भूल जाएँगे कर्तव्य अपना
तब कौन करेगा वध जाकर वन में उन आततायियों का…?
और मैं हतभागिनी / आकर बातों में सरस्वती की / कर बैठी सर्वनाश अपना ही
उकसाया तुम्हें माँगने को वे दो वरदान / वचन दिया था जिनका महाराज ने तुम्हें
जब बचाए थे प्राण उनके तुमने…
मेरा दुर्भाग्य / न जाने कैसे / तुम आ गईं बातों में मेरी
और माँग लिया वनवास / उसी पुत्र राम के लिए
जो था प्राणों से भी प्रिय / केवल तुम्हें ही नहीं / मुझे भी…
आज / जब कर दिया है निर्वासित भरत ने / राज्य से मुझे
अपनी कुटिया में एकाकी पड़ी / पछता रही हूँ कृत्य के लिए अपने…
याद आता है मुझे शैशव पुत्र राम का
भरत सरीखी मधुर किन्तु धीर गम्भीर मुस्कान लिए
घुटनों पर चलते जो आ जाते थे निकट मेरे
चढ़ कर गोदी में मेरी / खेलते कभी नथ से तो कभी कुण्डलों से मेरे
और मुग्धमना मैं निहारती रहती अपलक उन्हें…
हाय हतभाग्या / जिसने माना था तुझे मुझे माँ समान ही
भेज दिया उसे ही वन में / बनने को आहार हिंसक पशुओं का…?
आह कोमलांगी पुत्री जानकी / कुम्हला जाता था कमल सा मुख तुम्हारा
वातायन से झरती धूप से भी / नहीं दिखाई तनिक भी दया तुम पर भी मैंने…?
आज पूछता तो होगा तुम्हारा मुरझाया मुखमण्डल / क्या अपराध था मेरा माता…?
धिक्कारते होंगे क्रोध में तमतमाते हुए सौमित्र
तुम्हीं हो न वह कुलटा / जिसने दिया वैधव्य का दान तीनों माताओं को मेरी
और किया भोली उर्मिला को भी विवश / जलने को ज्वाला में विरह की…?
आज रिक्त पड़ा सिंहासन अवधपुरी का / उजड़ी हुई माँग तीनों रानियों की
सन्यासी बने भरत / परित्यक्ता सा जीवन उर्मिला का
हृदय को चीरते पथराए नेत्र कौशल्या के…
क्या यही सब इच्छित रहा था मुझ महत्त्वाकाँक्षिणी को…?
नहीं / मैंने तो चाहा था केवल राज्य / नाती भरत के लिए
वह भी स्वयं की इच्छा से नहीं / देवों के छल से…
अपराधिनी हूँ मैं तुम सबकी ही नहीं / समूचे राज्य की…
किन्तु धन्य हो तुम राम / कृतज्ञ हूँ मैं तुम्हारी
आज चौदह वर्षों बाद तुम्हें स्मरण हुआ मेरा / आए तुम वन में कुटिया पर मेरी…
मैं तो समझी थी / मिलेगा मुझे दण्ड मृत्यु का
अधिकार भी नहीं मुझ जैसी पापिनी को जीने का
तुम्हारी मोहिनी छवि के दर्शन कर भय नहीं मुझे मृत्यु का…
किन्तु यह क्या…?
माँ / स्वीकार करो प्रणाम अपने ज्येष्ठ पुत्र का
गम्भीर किन्तु मन को शान्ति पहुँचाता स्वर पुरुष का…?
आशीर्वाद दो मुझे माँ / अखण्ड सौभाग्य का
अमृत रस में भीगा स्वर स्त्री का…?
राम… सीता… मुझ पापिनी को तुमने कहा माँ…?
मैं तो थी उपेक्षिता वर्षों की / कारण अक्षम्य अपराध के ही अपने…
और तुमने एक धाय को बना दिया माँ…?
इतना विशाल हृदय तुम्हारा…?
क्षमा करो मुझे / स्वर भर्रा गया था मन्थरा का…
दृष्टि हो गई थी धुँधली प्रवाह से अश्रुओं के…
यही था प्रायश्चित उसका…
स्नेह पा राम और सीता का / प्रवाहित हो उठी अश्रुधारा नेत्रों से उसके
जिनमें प्रवाहित होने लगा अपराध बोध से उत्पन्न सन्ताप भी उसका
आज मर्यादा की रक्षा करने वाले पुत्र ने / किया प्रतिष्ठित एक धाय को / पद पर माँ के…
भूलकर अपराध उसके / अपनाया था पूर्ण हृदय से उसे…
भूले नहीं थे राम अपनी माता मन्थरा को कभी भी
तभी तो किया था प्रेम कुब्जा से / रूप में कृष्ण के
और कर दिया कूबड़ ठीक उसका / कराते हुए श्रृंगार अपना…
बना दिया उसे वही विशालाक्षी राजकुमारी
जो थी कभी सखी और बहिन तुम्हारी / रानी कैकेयी…
सभी बारह राशियों के लिए शनि कुम्भ में
सभी बारह राशियों के लिए शनि कुम्भ में
सभी बारह राशियों के लिए शनि कुम्भ में
शुक्रवार 29 अप्रैल 2022 यानी वैशाख कृष्ण चतुर्दशी को प्रातः सात बजकर चौवन मिनट के लगभग विष्टि करण और विषकुम्भ योग में शनि का गोचर तीस वर्षों के बाद अपनी ही एक राशि मकर से दूसरी राशि कुम्भ में होगा जो शनि की मूल त्रिकोण राशि भी है | तीस वर्षों के बाद इसलिए कि शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक भ्रमण करता है अतः सभी बारह राशियों की यात्रा करते हुए वापस उसी राशि में लौटने में तीस वर्षों का समय लग जाता है | कुम्भ राशि में विचरण करते हुए शनि 12 जुलाई 2022 से पुनः मकर राशि में फिर से गोचर करने लगेंगे और 17 जनवरी 2023 तक ये मकर राशि में ही रहेंगे इसके बाद कुम्भ राशि में वापस आ जायेंगे जहाँ 29 मार्च 2025 तक भ्रमण करने के पश्चात मीन राशि में प्रस्थान कर जाएँगे |
शनि के राशि परिवर्तन के साथ ही कुछ राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव शुरू हो जाता है तो कुछ को इन सबसे मुक्ति प्राप्त हो जाती है | कुम्भ राशि में भ्रमण करते हुए एक ओर जहाँ धनु राशि को साढ़ेसाती से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी – यद्यपि बारह जुलाई से लेकर सत्रह जनवरी 2023 तक जब शनि वक्री अवस्था में मकर में रहेगा – उस अवधि में साढ़ेसाती पुनः अपना प्रभाव दिखा सकती है और इस प्रकार पूर्ण रूप से साढ़ेसाती से मुक्ति सत्रह जनवरी 2023 के बाद ही मिलेगी – वहीं दूसरी ओर मकर राशि के लिए साढ़ेसाती का अन्तिम चरण होगा, कुम्भ राशि के जातकों के लिए साढ़ेसाती का द्वितीय चरण होगा और मीन राशि के लिए सात वर्षों की साढ़ेसाती का आरम्भ होगा | साथ ही मिथुन और तुला राशियों के लिए शनि की ढैया समाप्त होकर कर्क तथा वृश्चिक राशियों के लिए शनि की ढैया आरम्भ हो जाएगी | किन्तु यहाँ भी साढ़ेसाती की ही भाँती शनि के वक्री होने पर एक ओर जहाँ मिथुन और तुला राशियों की ढैय्या पुनः आरम्भ हो जाएगी वहीं कर्क और वृश्चिक राशियों को सावधान रहने की आवश्यकता तो रहेगी ही | मिथुन तथा तुला राशियों की ढैय्या सत्रह जनवरी के बाद ही पूर्ण रूप से समाप्त होगी |
कुम्भ राशि में प्रस्थान के समय शनिदेव धनिष्ठा नक्षत्र पर होंगे, जहाँ से पाँच जनवरी से वक्री होना आरम्भ होंगे और बारह जुलाई को वापस मकर में पहुँच जाएँगे | 23 अक्तूबर से मार्गी होना आरम्भ होंगे और 17 जनवरी को पुनः कुम्भ में आ जाएँगे | 31 जनवरी 2023 से पाँच मार्च तक अस्त भी रहेंगे | पन्द्रह मार्च से शतभिषज नक्षत्र पर भ्रमण आरम्भ होगा जहाँ एक बार पुनः 17 जून से वक्री होते हुए पन्द्रह अक्तूबर को धनिष्ठा नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे | चार नवम्बर से फिर मार्गी होना आरम्भ होंगे और पुनः चौबीस नवम्बर को शतभिषज नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे | बारह फरवरी 2024 से सत्रह मार्च तक पुनः अस्त रहेंगे | 6 अप्रैल को पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पर आकर तीस जून से वक्री होते हुए पुनः तीन अक्तूबर को शतभिषज नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे जहाँ पन्द्रह नवम्बर से मार्गी होना आरम्भ होंगे और 27 दिसम्बर को पूर्वा भाद्रपद पर वापस पहुँच जाएँगे | 23 फरवरी 2025 से 29 मार्च 2025 तक पुनः अस्त रहेंगे | और इसी प्रकार वक्री तथा अस्त होते हुए कुम्भ राशि की अपनी यात्रा पूर्ण करके अन्त में 29 मार्च 2025 को रात्रि पौने दस बजे के लगभग पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पर रहते हुए ही गुरु की मीन राशि में प्रस्थान कर जाएँगे | धीमी गति के कारण ही शनि एक राशि पर अपने ढाई वर्ष की यात्रा में अनेक बार अस्त भी होता है और वक्री भी होता है | सामान्यतः शनि के वक्री होने पर व्यापार में मन्दी, राजनीतिक दलों में मतभेद, जन साधारण में अशान्ति तथा प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और आँधी तूफ़ान आदि की सम्भावनाएँ अधिक रहती हैं | साथ ही जिन राशियों पर साढ़ेसाती अथवा ढैया का प्रभाव होगा उन्हें विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता होगी |
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि को कर्म और सेवा का कारक माना जाता है | यही कारण है कि शनि के वक्री अथवा मार्गी होने का प्रभाव व्यक्ति के कर्मक्षेत्र पर भी पड़ता है | शनि को अनुशासनकर्ता भी माना जाता है और कुम्भ राशि राशिचक्र की ग्यारहवीं राशि है जो लाभ स्थान भी माना जाता है तथा बड़े भाई और मित्रों आदि का भाव भी माना जाता है | राशि है | इस प्रकार शनि का कुम्भ राशि में गोचर इस सत्य का भी संकेत कहा जा सकता है कि उदारमना होना अच्छा है, किन्तु आवश्यकता से अधिक उदार बनकर होकर धन का अपव्यय करना मूर्खता ही कहा जाएगा | साथ ही यह भी कि हमें अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए | कुम्भ राशि में शनि का गोचर इस बात का संकेत है कि हमने पूर्व में जो योजनाएँ व्यक्ति ने बनाई हैं उनके क्रियान्वयन का समय आ गया है – सोच समझकर आगे बढ़ेंगे तो सफलता निश्चित रूप से प्राप्त हो सकती है |
कुम्भ राशि पर भ्रमण करते हुए शनि की तीसरी दृष्टि मेष राशि पर, सप्तम दृष्टि सिंह पर तथा दशम दृष्टि वृश्चिक राशि पर रहेगी | इनमें से मेष राशि के लिए शनि दशमेश और एकादशेश होता है, सिंह के लिए शनि षष्ठेश और सप्तमेश होता है तथा वृश्चिक के लिए तृतीयेश और चतुर्थेश बन जाती है |
इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अगले लेख में जानने का प्रयास करेंगे शनि के मकर राशि में गोचर के समस्त बारह राशियों के जातकों पर क्या प्रभाव सम्भव हैं…
एक बात और, ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तो “शं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनि… अतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की अथवा भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है… अपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगा… साथ ही कुम्भ अर्थात घट के भीतर क्या छिपा होता है इसके विषय में बाहर से देखकर कुछ नहीं कहा जा सकता | अतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहिये… निश्चित रूप से कुम्भ में से कुछ तो अमृत प्राप्त होगा… प्रस्तुत है सभी बारह राशियों के लिए शनि के कुम्भ में गोचर के सम्भावित परिणामों पर एक संक्षिप्त दृष्टि… अपनी चन्द्र राशि से गोचर देखने के लिए नीचे दिए लिंक्स में से अपनी राशि के लिंक पर क्लिक करें….
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/16/शनि-का-कुम्भ-में-गोचर/
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/17/मेष-व-वृषभ-राशियों-राशि-के/
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/18/मिथुन-और-कर्क-राशियों-के-ल/
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/19/सिंह-और-कन्या-राशियों-के-ल/
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/20/तुला-और-वृश्चिक-राशियों-क/
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/21/धनु-और-मकर-राशियों-के-लिए-श/
https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/22/कुम्भ-और-मीन-राशियों-के-लि/
शनि के विषय में सामान्य जानकारी अथवा शनि की ढैय्या आदि के विषय में जानकारी के लिए नीचे दिए यू ट्यूब लिंक्स में से किसी पर क्लिक करें…
सभी के लिए शनि का कुम्भ में गोचर मंगलकारी हो यही कामना है…
शुक्र का मीन में गोचर
शुक्र का मीन में गोचर
बुधवार 27 अप्रैल को शुक्र का गोचर अपनी उच्च राशि मीन में हो रहा है… तो आइये, सभी राशियों पर इस गोचर के सम्भावित प्रभावों के विषय में जानने का प्रयास करते हैं… किन्तु ध्यान रहे, ये समस्त फल सामान्य हैं… व्यक्ति विशेष की कुण्डली का व्यापक अध्ययन करके ही किसी निश्चित परिणाम पर पहुँचा जा सकता है… ग्रहों के गोचर अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं – यह एक ऐसी खगोलीय घटना है जिसका प्रभाव मानव सहित समस्त प्रकृति पर पड़ता है… वास्तव में सबसे प्रमुख तो व्यक्ति का अपना कर्म होता है… तो, कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहें यही कामना है…
शनि की ढैय्या
शनि की ढैय्या
अपने पिछले वीडियोज़ में हमने शनि के विषय में सामान्य जानकारी तथा उसकी दृष्टियों का सामान्य विवेचन किया था… आज बात करते हैं शनि की ढैय्या की… किन्तु इतना अवश्य कहेंगे कि यदि हम पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य कर्म करते रहेंगे तो ढैय्या के भी बहुत से दुष्प्रभावों से बचे रह सकते हैं…
पृथिवी दिवस
पृथिवी दिवस
पृथिवी दिवस
नमस्कार मित्रों ! आज थोड़ी सी बात पृथिवी दिवस की हो जाए – यानी जिसे हम सभी प्रत्येक वर्ष बाईस अप्रैल को Earth Day के नाम से मनाते हैं एक आन्दोलन के रूप में | इस वर्ष भी Earth Day के अवसर पर बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन विश्व भर में किया गया – कहीं पर्यावरण के सम्बन्ध में सेमिनार्स या वेबिनार्स – कहीं पृथिवी तथा पर्यावरण की सुरक्षा के सम्बन्ध में वर्कशॉप्स – कहीं भाषणों का तो कहीं काव्य सन्ध्याओं का आयोजन – तो कहीं वृक्षारोपण के कार्यक्रम… और इन सबका उद्देश्य एक ही था कि जन साधारण अपने पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक रहे… अपनी धरती माँ की रक्षा के प्रति जागरूक रहे… इत्यादि इत्यादि…
इन्हीं सन्दर्भों में कुछ बातें करने का मन हुआ तो इस लेख को लिखने का मोह संवरण नहीं कर पाए | हमारे भारत जैसे महान देश में वैदिक काल से ही हर दिन माँ वसुधा के लिए समर्पित होता है | हर दिन Earth Day होता है | किसी भी वैदिक, पौराणिक साहित्य को उठा कर देख लीजिये – आप पाएँगे कि हमारे दिन प्रतिदिन की गतिविधियों में – दिन प्रतिदिन के कार्य कलापों में – प्रकृति का कितना अधिक योगदान है | जो व्यावहारिक रूप से स्पष्ट दीख पड़ता भी है | वैदिक मान्यताओं के अनुसार पृथिवी की माता के रूप में उपासना की जाती है – भू देवी के रूप में उपासना की जाती है – सम्मान किया जाता है | प्रातःकाल जब प्रथम चरण पृथिवी पर रखते हैं तो उसकी प्रार्थना करते हुए उससे क्षमा याचना भी करते हैं…
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले | विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ||
अर्थात, समुद्ररूपी वस्त्र धारण करनेवाली, पर्वतरूपी स्तनों वाली एवं भगवान विष्णु की पत्नी हे भू देवी, हम आपको नमस्कार करते हैं, हमारे पाद अर्थात पैरों से आपका हम स्पर्श कर रहे हैं इसके लिए हमें क्षमा करें | साथ ही जितने भी यज्ञ यागादि सम्पन्न किये जाते हैं उनमें सर्वप्रथम पृथिवी का ही आह्वाहन स्थापन किया जाता है…
“ॐ पृथिवी त्वया धृता लोका, देवि त्वं विष्णुना धृता |
त्वं च धारय मां भद्रे, पवित्रं कुरु चासनम् ||”
अर्थात, हे माता पृथ्वी ! तुमने समस्त संसार को धारण किया हुआ है और भगवान विष्णु ने आप को धारण किया हुआ है | हे देवी ! तुम मुझे भी धारण करो एवं मेरे द्वारा प्रदत्त आसन पर विराजमान होकर उसे पवित्र करो… इतनी उदात्त भावनाएँ क्या किसी अन्य संस्कृति में परिलक्षित होती हैं ?
तत्वमसि, अहं ब्रह्मास्मि, सोSमस्मि तथा वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे महान और उदार विचार देने वाले हमारे विद्वान् मनीषियों ने पृथिवी की कल्पना एक विशाल ग्राम के रूप में की है – जिसमें अनेक प्रकार के जड़ चेतन जीव निवास करते हैं और सभी का अपना महत्त्व है | क्योंकि इस समस्त चराचर जगत में – इसके सभी जड़ चेतन में – परमात्मतत्व का निवास है और समस्त विश्व एक बहुत विशाल परिवार ही है | प्रकृति की उपासना हम किसी भय के कारण नहीं करते – इसलिए नहीं करते कि यदि प्रकृति हमारे विरुद्ध हो गई तो हमें कितनी अधिक हानि पहुँचा सकती है – यद्यपि ऐसा सम्भव है | किन्तु हम प्रकृति की उपासना – उसके जीवों की उपासना इस भाव से करते हैं क्योंकि हम इसमें निवास कर रहे प्रत्येक जीवन में उसी परमात्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं – फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, कोई अन्य पशु पक्षी हो, प्रस्तरखण्ड हो, पर्वत हों, वन हों, वृक्ष हों, नदी तालाब समुद्र मेघ कुछ भी हो – हम हर किसी में परमात्मा का वास मानते हैं और इसीलिए सबको अपने जैसा ही प्राणवान भी मानते हैं |
यजुर्वेद में पृथिवी को ऊर्जा अर्थात उर्वरक शक्तियों को प्रदान करने वाली तथा समस्त प्रकार की सम्पत्ति को प्रदान करने वाली वित्तायनी कहकर प्रार्थना की गई है कि वह प्राणिमात्र की समस्त प्रकार की दीनता हीनता से रक्षा करे…
“तप्तायनी मेसि वित्तायनी मेस्यनतान्मा नाथितादवतान्मा व्यथितात् |” (यजुर्वेद 5/9)
अथर्ववेद में तो पूरा एक सूक्त ही भूमि सूक्त के नाम से पृथिवी के लिए समर्पित है, जिसमें मानव जीवन के लिए पृथिवी तत्व का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है और बताया गया है कि यही पृथिवी तत्व शेष चार तत्वों – वायु, जल, अग्नि और आकाश – को सम्मिलित तथा सन्तुलित रखते हुए निरन्तर क्रियाशील रहकर समस्त जड़ चेतन को जीवनी शक्ति प्रदान करती रहती है…
“विश्वम्भरा वसुधानी प्रतिष्ठा हिरण्यवक्षा जगतों निवेशनी |
वैश्वानरं बिभ्रती भूमिरग्निमिन्द्रऋषभा द्रविणो नौ दधातु ||” (अथर्ववेद 12/16)
सबका भरण पोषण करने वाली विश्वम्भरा, अन्न औषधि आदि के रूप में समस्त वसुओं को धारण करने वाली वसुधानी अर्थात वसुधा, समस्त चराचर की प्रतिष्ठा अर्थात आधार, समस्त हितकारी स्वर्णादिक पदार्थों तथा वनस्पतियों को अपने वक्ष में धारण करने वाली हिरण्यवक्षा, वैश्वानर अर्थात समस्त जनों के कल्याणार्थ अग्नि को धारण करने वाली भू देवी हमारे लिए धन तथा स्वास्थ्य प्रदान करे |
साथ ही मानव को चेताया भी गया है कि पृथिवी का अकारण दोहन प्राणिमात्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है… और इसीलिए प्रार्थना भी की गई है कि…
“यत्ते भूमे विखनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु | मां ते मर्म विमृग्वरी या ते हृदयमर्पितम् ||” (अथर्ववेद 12/1/35) हे माता, हम जो तुम्हें हानि पहुँचा रहे हैं उसकी क्षतिपूर्ति भी शीघ्र ही हो जाए |
आज जितना अधिक दोहन पृथिवी का हो रहा है – अमर्यादित खनन हो रहा है कहीं किसी अनुसन्धान के नाम पर तो कहीं अन्य किसी प्रकार के मनुष्य के लोभी स्वभाव के कारण उसी सबका परिणाम है कि धरा के गर्भ में दरारें पड़ने के समाचार हमें जब तब प्राप्त होते रहते हैं | अपने लोभ के कारण हम इतना भी ध्यान नहीं रखते कि पृथिवी ही आत्मा से परमात्मा के मिलन का प्रमुख स्थान है…
क्या ही अच्छा हो आज मनुष्य पुनः उसी वैदिक मार्ग का अनुसरण आरम्भ कर दे जहाँ न केवल पृथिवी माता का अपितु समस्त चराचर का सम्मान किया जाता था पूर्ण श्रद्धा भाव से तथा समस्त चराचर में अपनी ही आत्मा का निवास माना जाता था…
है…https://www.astrologerdrpurnimasharma.in/2022/04/24/पृथिवी-दिवस/