अरे हुआ क्या, आज मनुज की रक्तपिपासा बढ़ती जाती | नहीं जान का मोल किसी की, दानवता है बढ़ती जाती || इसके वहशीपन से आदमखोर दरिन्दे भी शर्माते | इसके मुख पर दया नहीं, बस घोर क्रूरता ही मुसकाती || चीर हरण…
स्रोत: रक्तबीज के जैसे दानव
अरे हुआ क्या, आज मनुज की रक्तपिपासा बढ़ती जाती | नहीं जान का मोल किसी की, दानवता है बढ़ती जाती || इसके वहशीपन से आदमखोर दरिन्दे भी शर्माते | इसके मुख पर दया नहीं, बस घोर क्रूरता ही मुसकाती || चीर हरण…
स्रोत: रक्तबीज के जैसे दानव
अरे हुआ क्या, आज मनुज की रक्तपिपासा बढ़ती जाती |
नहीं जान का मोल किसी की, दानवता है बढ़ती जाती ||
इसके वहशीपन से आदमखोर दरिन्दे भी शर्माते |
इसके मुख पर दया नहीं, बस घोर क्रूरता ही मुसकाती ||
चीर हरण के साथ आज तेज़ाब भी मुख पे फेंका जाता |
ऐसा देख कुकृत्य, दु:शासन की भी हैं आँखें झुक जातीं ||
आज न कोई कृष्ण, हर तरफ़ क़ायर कौरव पाण्डव बैठे |
भीष्म द्रोण का काम नहीं, शकुनी की ही गोटी उलझाती ||
आज जगत के हाथों कितनी द्रौपदियाँ और कुन्ती बनतीं |
और बनी लावारिस कितने कर्णों की आत्माएँ रोतीं ||
चक्रव्यूह में फँस कितने अभिमन्यु बिना मौत मर जाते |
कितने अश्वत्थामाओं के मस्तक की है मणि छिन जाती ||
रक्तबीज के जैसे दानव रात और दिन बढ़ते जाते |
इनकी हुँकारों से तो धरती भी भय से थर्रा जाती ||
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स्रोत: शुभ प्रभात