मेघों ने बाँसुरी बजाई, झूम उठी पुरवाई रे | बरखा जब गा उठी, प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई रे || उमड़ा स्नेह गगन के मन में, बादल बन कर बरस गया प्रेमाकुल धरती ने नदियों की बाँहों से परस दिया | लहरों ने एक…
स्रोत: प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई
मेघों ने बाँसुरी बजाई, झूम उठी पुरवाई रे | बरखा जब गा उठी, प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई रे || उमड़ा स्नेह गगन के मन में, बादल बन कर बरस गया प्रेमाकुल धरती ने नदियों की बाँहों से परस दिया | लहरों ने एक…
स्रोत: प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई
मेघों ने बाँसुरी बजाई, झूम उठी पुरवाई रे |
बरखा जब गा उठी, प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई रे ||
उमड़ा स्नेह गगन के मन में, बादल बन कर बरस गया
प्रेमाकुल धरती ने नदियों की बाँहों से परस दिया |
लहरों ने एकतारा छेड़ा, कोयलिया इतराई रे
बरखा जब गा उठी, प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई रे ||
बूँदों के दर्पण में कली कली निज रूप निहार रही
धरती हरा घाघरा पहने नित नव कर श्रृंगार रही |
सजी लताएँ, हौले हौले डोल उठी अमराई रे |
बरखा जब गा उठी, प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई रे ||
अँबुवा की डाली पे सावन के झूले मन को भाते
हर इक राधा पेंग बढ़ाए, और हर कान्हा दे झोंटे |
हर क्षण, प्रतिपल, दसों दिशाएँ लगती हैं मदिराई रे
बरखा जब गा उठी, प्रकृति भी दुलहिन बन शरमाई रे ||
A post by: Swasti S Sharma, CMS-CHt FIBH (USA) Medical Support Clinical Hypnotherapist / Past Life Regression Therapist Certified by International Board of Hypnotherapy E-mail: swasti.hypnot…
स्रोत: Increase your confidence
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Swasti S Sharma, CMS-CHt FIBH (USA)
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स्रोत: शुभ प्रभात