मैंने देखा
खिड़की की जाली के बीच से आती
रेशम की डोर सी प्रकाश की एक किरण को
मुझ तक पहुँचते ही जो बदल गई
एक विशाल प्रकाश पुंज में
और लपेट कर मुझे
उड़ा ले चली एक उन्मुक्त पंछी की भाँति
उसी प्रकाश-किरण के पथ से / दूर आकाश में
जहाँ कोई अनदेखा
भर रहा था वंशी के छिद्रों में / अलौकिक सुरों के आलाप
जहाँ चारों ओर पुष्पित थे / अलौकिक रंगीन पुष्प
उस प्रकाश पुंज ने पहुँचा दिया मुझे
एक दिव्य हिमाच्छादित सरोवर पर
जिसमें खिले थे अनोखे नीलपद्म
और श्वेत हंस कर रहे थे अठखेलियाँ
नींद टूटी – स्वप्न भी टूटा
लेकिन नहीं – है विश्वास मुझे
सत्य होगा मेरा स्वप्न
जब मैं पहुँच जाऊँगी
अपनी आत्मा के शीतल सरोवर तक
मन्त्र पुष्पों से सज्जित
ध्यान के प्रकाश पथ से
अपने भीतर उतरती हुई
तब मेरा परिचय होगा
आत्मसरोवर में खिले हुए उस चैतन्य नीलपद्म से
जिसके साथ अठखेलियाँ कर रहा होगा
मेरे मानस का शुभ्र हंस…
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बहुत अच्छी कविता लगी
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